Book Title: Shatkhandagama Pustak 14
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 416
________________ ५, ६, ३७५ ) बंधणाणुयोगदारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ गुणहाणि ति मणिदं होदि ३००० । अपढमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पवेसग्गं विसेसाहियं । ३७१ । केत्तियतो विसेसो ? चरिमगणहाणिदव्वमेत्तो ३१०० । पढमे गुणहाणिट्ठाणंतरे पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३७२ ॥ के० विसेसो ? चरिमगणहाणिवत्वमेत्तो। कुदो ? बिदियाविगुणहाणिदव्वाणं दुगुणहीण-दुगुणहीणकमेण अवट्ठाणुवलंभादो ३२०० ।। अपढम-अचरिमासु हिदीसु पदेसग्गं विसेसाहियं ।। ३७३ ।। केत्तियमेत्तो विसेसो ? पढमचरिमणिसेगेहि ऊणविदियाविगुणहाणिवव्वमेत्तो ५७७९ । अपढमाए ट्ठिदीए पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३७४ ।। के० विसेसो ? चरिमणिसेयमेत्तो ५७८८ । अचरिमेसु गुणहाणिहाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ।३७५। के० विसेसो ? चरिमगुणहाणिदग्वेणूणपढमणिसेगमेत्तो ६२०० । अधिक कुछ कम डेढ गुणहानिप्रमाण गुणकार है यह उक्त कथनका तात्पर्य है ३०००। उससे अप्रथम गणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। ३७१ । विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम गुणहानिका जितना द्रव्य है उतना है (३००० + १००: । ३१०० ।। उससे प्रथम गणहानिस्थानान्तरों में प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । ३७२ । विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम गुणहानिका जितना द्रव्य है उतना है, क्योंकि, द्वितीय आदि गुणहानियोंका द्विगुणहीन द्विगुणहीन क्रमसे अवस्थान उपलब्ध होता है ( ३१००+१००%3D ) ३२०० । उससे अप्रथम-अचरम स्थितियोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । ३७३ । विशेषका प्रमाण कितना है ? प्रथम और अन्तिम निषेकसे न्यून द्वितीय आदि गुणहानियोंका जितना द्रव्य है उतना है ( ६३०० - ५२१ % ) ५७७९ । उसेस अप्रथम स्थितिमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। ३७४ । विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम निषेकका जितना प्रमाण है उतना है (५७७९ +९%D ) ५७८८ । उससे अचरम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । ३७५ । विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको प्रथम निषेकके द्रव्यमेंसे कम करनेपर जितना शेष रहे उतना है (५१२ - १००%3D४१२, ५७८८+४१२ = ) ६२०० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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