________________
३८० )
छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
( ५, ६, ३५६
करिय अण्णोष्ण भत्थरासी दूरूवूणा त्ति भणिदं होदि ३० 1 तस्स पमाणमेवं ३००० । अपढमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेस पवेसग्गं विसेसाहियं । ३५६ । केत्तियमेत्तो विसेसो ? चरिमगुणहाणिदव्वमेत्तो ३१०० ।
पढमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३५७ ॥ केत्तिय० विसेसो ? चरिमगुणहाणिदव्वमेत्तो ३२०० ।
अचरिमेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेस पदेसग्गं विसेसाहियं ३५८ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? चरिमगुणहाणिदव्वेणूण बिदियादिगुणहाणिदव्वमेत्तो ६२०० । सव्वेसु गुणहाणिट्ठाणंतरेसु पदेसग्गं विसेसाहियं ॥ ३५९ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? चरिमगुणहाणिदव्वमेत्तो ६३०० ।
एवं तिष्णं सरीराणं ॥ ३६० ॥
जहा ओरालियस रीरस्स उक्कस्सपदप्पाबहुअं परूविदं तहा वेउब्विय- तेजाकम्मइयसरीराणं पि परूवेदव्वं । णवरि तेजा - कम्मइयसरीराणमण्णोष्णन्भत्थरासिपमाणं णादूण माणिदव्वं ।
जो अन्योन्याभ्यस्त राशि उत्पन्न हो उसमेंसे दो कम ( ३२ - २३० ) गुणकार शलाका है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । उसका प्रमाण इतना है । १००x३० ) ३००० ।
उससे अप्रथम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । ३५६ । विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम गुणहानिक। जितना द्रव्य है उतना है ( ३०००+१०० = ) ३१०० अप्रथम गुणहानियोंका द्रव्य ।
उससे प्रथम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । ३५७ । विशेषका प्रमाण कितना है ? अन्तिम गुणहानिके द्रव्यका जितना प्रमाण है ( ३००० + १०० = ) ३२०० ।
उससे अचरम गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । ३५८ । विशेषका प्रमाण कितना है ? द्वितीयादि गुणहानियोंके द्रव्यमेंसे अन्तिम गुणहानि के कम करनेपर जो शेष रहे उतना है ( ३१०० १०० = ३०००; ३२०० + ३००० = ) ६२०० । उससे सब गुणहानिस्थानान्तरोंमें प्रदेशाग्र विशेष अधिक है । ३५९ ।
विशेषका प्रमाण कितना है ? अतिम गुणहानिके द्रव्यका जितना प्रमाण है उतना है
( ६२०० + १०० = ) ६३०० |
इसी प्रकार तीन शरीरोंकी अपेक्षा जानना चाहिए । ३६० ।
जिस प्रकार औदारिकशरीरका उत्कृष्टपदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा है उसी प्रकार वैक्रियिकशरीर, तैजसशरीर और कार्मणशरीरका भी कहना चाहिए। इतनी विशेषता है कि तेजसशरीर और कार्मणशरीरकी अन्योन्याभ्यस्तराशिका प्रमाण जान कर कहना चाहिए ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org