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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
भावादो। अभवसिद्धियपाओग्गाओ जाओ पुढवियादिचत्तारिकाएसु लम्भमाणाओ ताओ वट्टमाणकाले सांतराओ । कुदो? वट्टमाणकाले पत्तेयसरीरवग्गणाओ उक्कस्सेण असंखेज्जलोगमेतीओ चेव होंति ति णियमादो। विगहगदीए वट्ट माणा अणंता जीवा पत्तेयसरीरवग्गणाए अंतो णिवदंति त्ति पत्तेयसरीरवग्गणा* अणंता त्ति किण्ण घेप्पदे? ण; णिगोदणामकम्मोदएण बादरणिगोदत्तं सुहमणिगोदत्तं च पत्ताणं पत्तेयसरीरवग्गणत्तविरोहादो। विग्गहगदीए वट्टमाणाणं अशुदिाणपत्तेयसरीरणामकम्माणं कथं पत्तेयसरीरत्तमिदि चे? ण एस दोसो; पत्तेयसरीरोदयस्स तंतत्ताभावादो। भावे वा खीणकसाओ वि पत्तेयसरीरवग्गणा होज्ज; तदुदयसंतं पडि विसेसाभावादो। तदो बादर-सुहमणिगोदेहि असंबद्धजीवा पत्तेयसरीवग्गणा त्ति घेतव्वा । ण च बादरसुहुमणिगोदाणं विग्गहगदीए वि विच्छिण्णेगजीवो उवलब्भदे; तत्थ वि एगबंधणबद्धअ. गंतजीवोलंभादो। तत्थ एगजीवे संते को दोस्रो चे?ण; बादर-सहमणिगोदवग्गणाणमाणंतियप्पसंगादो। एदं पिणस्थि; असंखेज्जलोगमेत्ताओ चेव होंति त्ति गुरूव देसादो। नियम नहीं है । अभव्योंके योग्य जो पृथिवीकायिक आदि चार स्थावर कायिकोमें प्राप्त होनेवाली वर्गणायें हैं वे वर्तमानकालमें सान्तर हैं, क्योंकि, वर्तमानकाल में प्रत्येकशरीरवर्गणाय उत्कृष्टरूपसे असंख्यात लोकप्रमाण ही होती हैं ऐसा नियम है।
शंका-विग्रहगतिमें विद्यमान अनन्त जीव प्रत्येकशरीरवर्गणाके भीतर गभित होते हैं, इसलिए प्रत्येकशरीरवर्गणायें अनन्त होती हैं ऐसा क्यों नहीं ग्रहण करते ?
समाधान नहीं, क्योंकि, निगोद नामकर्मके उदयसे बादर निगोद और सूक्ष्म निगोदपनेको प्राप्त हए जीवोंके प्रत्येकशरीरवर्गणाओंके होने में विरोध है।
शंका-विग्रहगतिमें विद्यमान जीवोंके प्रत्येक शरीर नामकर्मका उदय न होने पर ने प्रत्येकशरीर कैसे हो सकते हैं ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, प्रत्येकशरीरके उदयकी अधीनताका अभाव है । यदि उदयकी अधीनता मानी जाय तो क्षीणकषाय भी प्रत्येकशरीरवर्गणा हो जावे, क्योंकि, उसके उदय और सत्त्वके प्रति वहां कोई विशेषता नहीं है। इसलिए बादर निगोद और सूक्ष्मनिगोदोंसे असम्बद्ध जीव प्रत्येकशरीरवर्गणा होते हैं ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए । यदि कहा जाय कि विग्रहगतिमें भी बादरनिगोद और सूक्ष्म निगोदका स्वतंत्ररूपसे एक जीव पाया जाता है सो यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि वहां पर भी एक बन्धन में बाँधे हुए अनन्त जीव पाये जाते हैं।
शंका-वहां एक जीवके रहने में क्या दोष है?
समाधान-नही, क्योंकि, ऐसा मानने पर बादरनिगोद और सूक्ष्म निगोदवर्गणाओंको अनन्तपने का प्रसंग आता है। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, वे असंख्यात लोकप्रमाण ही होती हैं ऐसा गुरुका उपदेश है।
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* अ० प्रती 'पत्तेयमगरवगण
: ता. प्रत्तो जीवा पत्तेयसरीरवम्गणा' इति पाठ।। होज्ज' इति पाठः 1 Jain Education International
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