________________
३४० )
छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, २६४
जं बिवियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं ।। २६४॥
केत्तियमेत्तेण ? णिसेगमागहारेण पढाणसेगं खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्तेण । केत्तियमेत्तो एत्थ णिसेगभागहारो? दोगणहाणिमेत्तो। गणहाणिपमाणं केत्तियं ? ओरालिय-वेउम्विय-आहारसरीराणमंतोमहत्तं । तेजइय-कम्मइयसरीराणं पुण गुणहाणिपमाणं पलिदोवमस्स असंखे० भागो।।
जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं ॥ २६५ ।।
केत्तियमेत्तेण? सगसगणिसेयभागहारेहि रूवणेहि सगसगबिदियणिसेगेसु खंडिदेसु तत्थ एगखंडमेत्तेण ।
जं चउत्थसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं ।। २६६ ॥
केत्तियमेत्तेण ? सगसगणिसेयमागहारेहि दुरूवूणेहि सगसगतदियणसेगेसु खंडिदेसु तत्थ एगखंडमेत्तेण । एवं णिसेयभागहारो तिरूवणचदुरूवणादिकमेण यवो जाव* पढमगणहाणि ति । पुणो उवरि णिसेगभागहारो चेव होदि। तत्तो उवरि रूवणादिकमेण यन्वो।
जो द्वितीय समयमें प्रदेशाग्र निषिक्त होता है वह विशेषहीन है । २६४ ।
कितना हीन है ? निषेकभागहारसे प्रथम निषेकको भाजित करने पर जो एक भाग प्राप्त होता है उतना हीन है।
शंका-- यहाँ निषेकभागहार कितना है ? समाधान-- दो गुणहानिमात्र है। शंका-- गुणहानिका प्रमाण कितना है।
समाधान-- औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरकी गुणहानिका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है। परन्तु तैजसशरीर और कार्मणशरीरकी गुणहानिका प्रमाण पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है।
जो तृतीय समयमें प्रदेशाग्र निषिक्त होता है वह विशेषहीन है । २६५ ।
कितना हीन है ? एक कम अपने अपने निषेकभागहारसे अपने अपने द्वितीय निषेकके भाजित करने पर वहाँ जो एक भाग लब्ध आवे उतना हीन है।
जो चतुर्थ समयमें प्रदेशाग्र निषिक्त होता है वह विशेषहीन है । २६६ ।
कितना हीन है ? दो कम अपने अपने निषेकभागहारसे अपने अपने तृतीय निषेकके भाजित करने पर वहाँ जो एक भाग लब्ध आवे उतना हीन है । इस प्रकार प्रथम गुणहानिके अन्त तक निषेकभागहार तीन कम और चार कम आदि क्रमसे ले जाना चाहिए। पुन: ऊपर निषेकभागहार ही होता है। फिर वहाँ ऊपर एक कम आदि क्रमसे ले जाना चाहिए ।
४ का प्रतो ।जाव ' इत आरभ्य टीकागतपाठो नोपलभ्यते ।
* ता० प्रती होदि ] ' तत्थ उवरि ' इति पाठः । Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org