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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५,६,२९०
अंतो मुहुत्तमे तजहणणिव्यत्तीए देसूण बावीस वस्सस हस्तमेतनिश्वत्तिट्ठाणेसु भागे हिदेसु संखेज्जाणि रूवाणि लब्भंति । जं लद्धं सो गुणगारो । २ ।
जीवणियट्ठाणाणि विशेसाहियाणि ।। २९० ।।
बंधाहतो जीवणियद्वाणाणं समत्तं मोत्तूण कुदो विसेसाहियत्तं ? ण मुंजमाणाउअस्स कदलीघादेण जहण्णणिव्वत्तिद्वाणादो हेट्ठा जीवणियद्वाणाणमुवलंभादो । भुंजमाणाउअस कदलीघादो अस्थि त्ति कुदो जवढे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो, अण्णहा निव्वत्तिद्वाणेहिंतो जीवणियद्वाणाणं विसेसाहियत्ताणुववत्तीदी । एत्थ कदलीघादम्मि बे उदेसा के वि आइरिया जहण्णाउअम्मि आवलियाए असंखे० भागमेत्ताणि जीवणियद्वाणाणि लब्धंति त्ति भणंति । तं जहा- पुव्वभणिदसुहुमेइं दियपज्जत सव्वजहण्णा उअणिव्वत्तिद्वाणस्स कदलीघादो णत्थि । एवं समउत्तरदुसमउत्तराविणिव्वत्तीणं पि घादो णत्थि । पुणो एदम्हादो जहण्णणिव्वत्तिद्वाणादो संखेज्जगुणमाउअं बंधिण सुहुमपज्जत्ते सुववण्णस्स अत्थि कदलीघावो । पुण तं घावयमाणेण सव्वजहग्णाउअणिव्वत्तिद्वाणं समऊणं घावेदूण कदं ताधे तमेगं जीवणियद्वाणं होदि । पुणो तेणेव विधिना बिदियजीवेण घादेदूण दुसमऊणं जहण्णणिव्वत्तिद्वाणाउए ट्ठविदे
का प्रमाण होता है । इस प्रकार होता है ऐसा समझकर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण जघन्य निर्वृत्तिका कुछ कम बाईस हजार वर्षप्रमाण निर्वृत्तिस्थानों में भाग देनेपर संख्यात अंक लब्ध आते हैं । यहाँ जो लब्ध आया है वह गुणकार है ।
उनसे जीवनीय स्थान विशेष अधिक हैं । २९० ।
शंका-- जीवनीय स्थान बन्धस्थानोंके समान न होकर विशेष अधिक कैसे हैं ? समाधान -- नहीं, क्योंकि, भुज्यमान आयुका कदलीघात सम्भव होनेसे जघन्य निर्वृत्तिस्थान से नीचे जीवनीय स्थान उपलब्ध होते हैं।
शंका-- भुज्यमान आयुका कदलीघात होता है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- इसी सूत्रसे जाना जाता है, अन्यथा निर्वृत्तिस्थानोंसे जीवनीयस्थान विशेष अधिक नहीं बन सकते ।
यहाँ कदलीघात के विषय में दो उपदेश पाये जाते है। कितने ही आचार्य जघन्य आयुमें आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवनीय स्थान लब्ध होते हैं ऐसा कहते हैं। यथा- पहले कहे गये सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकी सबसे जघन्य आयुके निर्वृत्तिस्थानका कदलीघात नहीं होता । इसी प्रकार एक समय अधिक और दो समय अधिक आदि निर्वृत्तियोंका भी घात नहीं होता । पुन: इस जघन्य निर्वृत्तिस्थानसे संख्यातगुणी आयुका बन्ध करके सूक्ष्म पर्याप्तकों में उत्पन्न हुए जीवका कदलीघात होता है । पुनः उसका घात करनेवाले जीवने आयुके सबसे जघन्य निर्वृत्तिस्थानका घात करके उसे एक समय कम किया तब वह एक जीवनीयस्थान होता है । पुन: उसी विधि से दूसरे जीके द्वारा घात करके जघन्य निर्वृत्तिस्थानरूप आयुके दो समय कम स्थापित करने
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