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५, ६, ३३० )
बंणानुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ
( ३६९
वरि तेजइयस्स जहण्णिया अग्गट्ठिदी अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सिया अग्गट्टिदी छावट्ठिसागरोवमाणि । वेउब्वियसरीरस्स जहणिया अग्गट्टिदी दसवस्ससहस्वाणि । उक्कस्सिया अग्गट्टिदी तेत्तीससागरोवमाणि ।
सव्वत्थोवा आहारसरीरस्स जहष्णिया अग्गट्टिदी || ३२६ ॥
अंतमत्तपमानत्तादो ।
अग्गट्ठविविसेसो संखेज्जगुणो ॥ ३२७॥
कुदो ? जहण्ण अग्गट्टिवीवो उक्कस्सअग्गट्ठिदीए संखेज्जगुणत्तादो । अग्गट्ठिदिट्ठाणाणि रूवाहियाणि ॥ ३२८ ॥
सुगमं ।
उक्कस्सिया अग्गट्ठिदी विसेसाहिया ॥ ३२९॥ केत्तियमेत्तेण ? अंतोमुहुत्तमेत्तेण ।
भागाभागानुगमेण तत्थ इमाणि तिष्णि अणुयोगद्दाराणि - जहणपदे उक्कस्सपदे अजहरण - अणुक्कस्सपदे ॥ ३३० ॥
एवमेत्थ तिणि चेव अणुयोगद्दाराणि होंति, अण्णेसिमसंभवादो ।
कि तैजसशरीरकी जघन्य अग्रस्थिति अन्तर्मुहूतं प्रमाण है । उत्कृष्ट अग्रस्थिति छ्यासठ सागर - प्रमाण है । वैक्रियिकशरीरकी जघन्य अग्रस्थिति दस हजारवर्षप्रमाण है । उत्कृष्ट अग्र स्थिति तेतीस सागरप्रमाण है ।
आहारकशरीर की जघन्य अग्र स्थिति सबसे स्तोक है || ३२६ ॥ क्योंकि, उसका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है ।
उससे अग्रस्थितिविशेष संख्यातगुणा है ॥ ३२७॥
क्योंकि, जघन्य अग्रस्थितिसे उत्कृष्ट अग्रस्थिति संख्यातगुणी है । उससे अग्र स्थितिस्थान रूपाधिक हैं ॥३२८॥
यह सूत्र सुगम है ।
उनसे उत्कृष्ट अग्र स्थिति विशेष अधिक है ।। ३२९ ॥
कितनी अधिक है ? अन्तर्मुहुर्तप्रमाण अधिक है । भागाभागानुगमकी अपेक्षा वहां ये तीन अनुयोगद्वार हैं- जघन्यपद, उत्कृष्टपव और अजघन्य - अनुत्कृष्टपद ॥३३०॥
इस प्रकार यहाँ पर तीन ही अनुयोगद्वार होते हैं, क्योंकि, अन्य अनुयोगद्वारा यहाँ पर सम्भव नहीं हैं ।
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