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५, ६, ३४१ )
बंधणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए पदेसविरओ
असंखेज्जा भागा ॥ ३३८ ॥
को पडिभागो ? किणविवगणहाणी पडिभागो । तत्थ एगरूधधरिवं मोत्तण बहुरूवरि गहिदे इच्छिदवव्वं होदि त्ति घेत्तव्वं ।।
एवं चदुण्णं सरीराणं ॥ ३३९ ।। गरि अप्पप्पणो गणहाणिपमाणं जाणिदूण वत्तव्वं ।
अप्पाबहुए ति तत्थ इमाणि तिणि अणुयोगद्दाराणिजहण्णपदे उक्कस्सपदे जहण्णुक्कस्सपदे ॥ ३४० ॥
एवमेत्थ तिण्णि चेव अणुयोगद्दोराणि होति, अण्णेसिमसंभवादो। एस्थ एगेगद्विदिपदेसग्गं जहणं णाम, अप्पहाणीभवकालएगत्तेण कालविसेसस्सेव गहणावो। एगे. गगुणहाणी उक्कस्सपदं णाम, एगसमयं पेक्खिदूण गुणहाणिकालस्स उक्कस्सत्तवलं. भादो । तदुभयं जहण्णक्कस्सपदं णाम ।
जहण्णपदेण सव्वत्थोवा ओरालियसरीरस्स चरिमाए टिवीए पवेसग्गं ॥३४॥ ___ जंतिण्णं पलिदोवमाणं चरिमसमए णिसित्तं पवेसरगं तं थोवं । ९ ।।
असंख्यात बहुभाग प्रमाण है ॥३३८॥
प्रतिभाग क्या है ? कुछ कम डेढ गुणहानि प्रतिभाग है। डेढ़ गुणहानिका विरलन करके उस विरलन राशिके एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको छोड़कर शेष बहुत अंकोंके प्रति प्राप्त द्रव्यके ग्रहण करने पर इच्छित द्रव्य होता है ऐसा ग्रहण करना चाहिए ।
इसी प्रकार चार शरीरोंकी अपेक्षा भागाभाग जानना चाहिए ॥३३९।।
इतनी विशेषता है कि अपनी अपनी गुणहानिका प्रमाण जान कर कथन करना चाहिए।
अल्पबहुत्वका अधिकार है । उसमें ये तीन अनुयोगद्वार हैं-जघन्यपद उत्कृष्टपद, और जघन्य-उत्कृष्टपद ।।३४०।।
___ इसप्रकार यहाँ पर तीन ही अनुयोगद्वार होते हैं, क्योंकि, अन्य अनुयोगद्वार असम्भव है। यहाँ पर एक एक स्थितिके प्रदेशाग्रकी जघन्य संज्ञा है, क्योंकि, अप्रधानीभूत कालके एकत्वकी अपेक्षा कालविशेषका ही यहाँ ग्रहण किया है । एक एक गुणहानिकी उत्कृष्टपद संज्ञा है । क्योंकि, एक समयको देखते हुए गुणहानिके कालमें उत्कृष्टपना पाया जाता है। तथा उन दोनोंकी जघन्य उत्कृष्टपद संज्ञा है।
जघन्यपदकी अपेक्षा औवारिकशरीरको अन्तिम स्थितिका प्रदेशाग्न सबसे स्तोक है ॥३४१॥
____ जो तीन पल्यप्रमाण स्थितिके अन्तिम समयमें निषिक्त प्रदेशान है वह स्तोक है ।
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