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३६८) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ६, ३२४ विसेसाहियणिद्देसकरणादो । जदि एवं तो विसेसाहियणिद्देसस्स पुव्वणिवाओ कायव्वो? ण एस दोसो, जवि वि पच्छा णिविट्ठो तो वि एदस्स परूवणा पुव्वं चेव होदि ति उवदेसेण विणा वि अवगम्ममाणत्तादो।
उक्कस्सिया अग्गट्टिदी विसेसाहिया ॥३२४॥ केत्तियमेत्तेण ? समऊणजहण्णअग्गटिदिमेत्तेण । एवं तिण्णं सरीराणं ॥३२५॥
जहा ओरालियसरीरस्स चदुण्णमणयोगद्दाराणं परूवणा कदा तहा आहारसरीरवज्जाणं सेसतिण्णं सरीराणं परूबणा कायवा । वरि कम्मइयसरीरस्स जहणिया अग्गदिदी थोवा ति वृत्ते सुहुमसांपराइयस्स चरिमबंधो घेत्तव्यो । अग्गटिदि. विसेसो असंखेज्जगणो ति बुत्ते पंचिदियजहणियमग्गट्टिदि सत्तरिसागरोवमकोडाकोडिमेत्तउक्कस्सअग्गदिदीए सोहिय पलिदो० संखे०भागमेतदिदिबंधढाणेसु तत्थ पक्खित्तेस अग्गद्विविविसेसो होदि । एदम्हि जहण्णअग्गदिदीए भागे हिदे पलिदो० असंखे०भागो आगच्छति । एसो एत्थ गणगारो । अग्गटिविट्ठाणाणि रूवाहियाणि । उक्कस्सिया विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? संखेज्जेहि पलिदोवमेहि । सेसं सगमं ।
विशेषाधिक पदका निर्देश किया है।
शंका-यदि ऐसा है तो विशेषाधिकपदका पूर्व निपात करना चाहिए ?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, यद्यपि विशेषाधिक पदका पश्चात् निर्देश किया तो भी इसकी प्ररूपणा पहले ही होती है कह बात उपदेशके बिना भी जानने योग्य है ।
उनसे उत्कृष्ट अग्रस्थिति विशेष अधिक है। ३२४ ।।
कितनी अधिक है ? एक समय कम जघन्य अग्रस्थितिका जितना प्रमाण है उतनी अधिक है।
इस प्रकार तीन शरीरोंको प्ररूपणा करनी चाहिए ॥ ३२५ ।।
जिस प्रकार औदारिकशरीरकी अपेक्षा चार अनुयोगद्वारोंका कथन किया है उसी प्रकार आहारकशरीरको छोड़ कर शेष तीन शरीरोंकी अपेक्षा कथन करना चाहिए । इतनी विशेषता है कि कार्मणशरीरकी जघन्य अग्रस्थिति स्तोक है ऐसा कहनेपर सूक्ष्मसाम्परायिक जीवका अन्तिम समय में होनेवाला बन्ध लेना चाहिए । अग्रस्थितिविशेष असंख्यात गुणा है ऐसा कहने पर पञ्चेंद्रियकी जघन्य अग्रस्थितिको सत्तर कोडाकोडी सागरप्रमाण उत्कृष्ट अग्रस्थितिमें से घटा कर उसमें पल्यके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिबन्धस्थानों के मिलाने पर अग्रस्थितिविशेष होता है। इसमें जघन्य अग्रस्थितिका भाग देने पर पल्यका असंख्यातवां भाग लब्ध आता है । यह यहाँ पर गुणकार है । अग्रस्थितिस्थान एक अधिक हैं । उत्कृष्ट अग्रस्थिति विशेष अधिक है। कितनी अधिक है ? संख्यात पल्पप्रमाण अधिक है। शेष कथन सुगम है । इतनी विशेषता है
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