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________________ ३५४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड (५,६,२९० अंतो मुहुत्तमे तजहणणिव्यत्तीए देसूण बावीस वस्सस हस्तमेतनिश्वत्तिट्ठाणेसु भागे हिदेसु संखेज्जाणि रूवाणि लब्भंति । जं लद्धं सो गुणगारो । २ । जीवणियट्ठाणाणि विशेसाहियाणि ।। २९० ।। बंधाहतो जीवणियद्वाणाणं समत्तं मोत्तूण कुदो विसेसाहियत्तं ? ण मुंजमाणाउअस्स कदलीघादेण जहण्णणिव्वत्तिद्वाणादो हेट्ठा जीवणियद्वाणाणमुवलंभादो । भुंजमाणाउअस कदलीघादो अस्थि त्ति कुदो जवढे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो, अण्णहा निव्वत्तिद्वाणेहिंतो जीवणियद्वाणाणं विसेसाहियत्ताणुववत्तीदी । एत्थ कदलीघादम्मि बे उदेसा के वि आइरिया जहण्णाउअम्मि आवलियाए असंखे० भागमेत्ताणि जीवणियद्वाणाणि लब्धंति त्ति भणंति । तं जहा- पुव्वभणिदसुहुमेइं दियपज्जत सव्वजहण्णा उअणिव्वत्तिद्वाणस्स कदलीघादो णत्थि । एवं समउत्तरदुसमउत्तराविणिव्वत्तीणं पि घादो णत्थि । पुणो एदम्हादो जहण्णणिव्वत्तिद्वाणादो संखेज्जगुणमाउअं बंधिण सुहुमपज्जत्ते सुववण्णस्स अत्थि कदलीघावो । पुण तं घावयमाणेण सव्वजहग्णाउअणिव्वत्तिद्वाणं समऊणं घावेदूण कदं ताधे तमेगं जीवणियद्वाणं होदि । पुणो तेणेव विधिना बिदियजीवेण घादेदूण दुसमऊणं जहण्णणिव्वत्तिद्वाणाउए ट्ठविदे का प्रमाण होता है । इस प्रकार होता है ऐसा समझकर अन्तर्मुहूर्तप्रमाण जघन्य निर्वृत्तिका कुछ कम बाईस हजार वर्षप्रमाण निर्वृत्तिस्थानों में भाग देनेपर संख्यात अंक लब्ध आते हैं । यहाँ जो लब्ध आया है वह गुणकार है । उनसे जीवनीय स्थान विशेष अधिक हैं । २९० । शंका-- जीवनीय स्थान बन्धस्थानोंके समान न होकर विशेष अधिक कैसे हैं ? समाधान -- नहीं, क्योंकि, भुज्यमान आयुका कदलीघात सम्भव होनेसे जघन्य निर्वृत्तिस्थान से नीचे जीवनीय स्थान उपलब्ध होते हैं। शंका-- भुज्यमान आयुका कदलीघात होता है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- इसी सूत्रसे जाना जाता है, अन्यथा निर्वृत्तिस्थानोंसे जीवनीयस्थान विशेष अधिक नहीं बन सकते । यहाँ कदलीघात के विषय में दो उपदेश पाये जाते है। कितने ही आचार्य जघन्य आयुमें आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण जीवनीय स्थान लब्ध होते हैं ऐसा कहते हैं। यथा- पहले कहे गये सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकी सबसे जघन्य आयुके निर्वृत्तिस्थानका कदलीघात नहीं होता । इसी प्रकार एक समय अधिक और दो समय अधिक आदि निर्वृत्तियोंका भी घात नहीं होता । पुन: इस जघन्य निर्वृत्तिस्थानसे संख्यातगुणी आयुका बन्ध करके सूक्ष्म पर्याप्तकों में उत्पन्न हुए जीवका कदलीघात होता है । पुनः उसका घात करनेवाले जीवने आयुके सबसे जघन्य निर्वृत्तिस्थानका घात करके उसे एक समय कम किया तब वह एक जीवनीयस्थान होता है । पुन: उसी विधि से दूसरे जीके द्वारा घात करके जघन्य निर्वृत्तिस्थानरूप आयुके दो समय कम स्थापित करने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001813
Book TitleShatkhandagama Pustak 14
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages634
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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