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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
( ५, ६, २५७
अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो॥२५७॥ जं बिदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं केवडिया ॥२५८॥ अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो ॥२५९।। जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं केवडिया ॥२६०।। अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागो ॥२६॥
एवं जाव उक्कस्सेण छावट्ठिसागरोवमाणि कम्मट्ठिदी ॥२६२॥ एवाणि सुत्ताणि सुगमाणि । वरि तेजइयसरीरस्स छावट्टिसागरोवमाणि कम्मइयसरीरस्स कम्मदिदी घेत्तव्वा । तेजा-कम्मइयसरीराणं पढमसमयाहारपढमसमयतब्मवत्थविसेसणाभावादो पुधजोगो कदो । एसा दिवि पडि णिसित्तपरमाणणं पंचसरीराणि अस्सिऊण जा पमाणपरूवणा कदा । सा किमेगसमयपबद्धमस्सिदूण कदा आहो जाणासमयपबद्धे अस्सिदण कदा त्ति? एगसमयपबध्दमस्सिदूण कदा । जदि एगसमयपबध्वमस्सिदूण* कदा तो कम्मइयसरीरस्स आबाधं मोत्तण जं पढमसमए
अभव्योंसे अनन्तगणा और सिध्दोंके अनन्तवें भागप्रमाण है ।। २५७ ।। जो प्रदेशाग्र द्वितीय समयमें निषिक्त होता है वह कितना है ।। २५८ ।। अभव्योंसे अनन्तगणा और सिध्दोंके अनन्तवें भागप्रमाण है ॥ २५९ ॥ जो प्रदेशाग्र तृतीय समयमें निषिक्त होता है वह कितना है । २६० । अमव्योंसे अनन्तगुणा और सिध्दोंके अनन्तवें भागप्रमाण है । २६१ ।
इस प्रकार उत्कृष्टरूपसे छयासठ सागर और कर्मस्थिति तकके निषेकोंका प्रमाण जानना चाहिए ॥२६२ ।।
ये सूत्र सुगम हैं। इतनी विशेषता है कि तैजसशरीरकी छयासठ सागरप्रमाण और कार्मण शरीरकी कर्मस्थितिप्रमाण स्थिति लेनी चाहिए। तेजसशरीर और कार्मणशरीरके प्रथम समयमें आहारक हुए और प्रथम समयमें तद्भवस्थ हुए ये दो विशेषण नहीं होने से अलगसे सूत्ररचना की है। यह प्रत्येक स्थितिके प्रति निषिक्त होनेवाले परमाणुओंकी पाँच शरीरोंका आश्रय लेकर उत्पन्न होनेवाली प्ररूपणा की है।
शंका- वह क्या एक समयप्रबद्धका आश्रय लेकर की है या नाना समय प्रबद्धोंका आश्रय लेकर की है?
समाधान- एक समयप्रबद्धका आश्रय लेकर की है। शंका- यदि एक समयप्रबद्धका आश्रय लेकर की है तो कार्मणशरीरका आबाधाको
* ता. प्रतो 'एगसमयमस्सिदूण ' इति पाठ: 1
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