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३५०) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, २८२ को गुण ? अंतोमहत्तं ।
तेजा-कम्मइयसरीरिणा तेजा-कम्मइयसरीरत्ताए जं पढमसमए पदेसग्गं तदो पलिवोवमस्स असंखेज्जविभागं गंतूण दुगुणहीणं पलिदो० असंखे०भागं गंतूण दुगुणहीणं ॥२८२॥
पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागं गंतूण णिसेगस्स दुगुणहोणत्तं कुदो नव ? एवम्हादो चेव सुत्तादो । ण च पमाणं पमाणंतरमवेक्खदे, अणवत्थापसंगावो।
एवं दुगुणहीणं दुगुणहीणं जाव उक्कस्सेण छावसिागरोवमाणि कम्मट्ठिवी ॥२८३॥
सुगममेदं ।
एयपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरमसंखेज्जाणि पलिदोवमवग्गमूलाणि जाणापदेसगुणहाणिट्ठाणंतराणि पलिदोवमवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागो ।।२८४॥
एत्थ वि पुव्वं व गुणहाणिअद्धाणादो गाणागणहाणिसलागाओ उप्पादेवव्वाओ।
गुणकार क्या है ? गुणकारका प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है।
तेजसशरीरवाले और कार्मणशरीरवाले जीवके द्वारा तैजसशरीर और कार्मणशरीररूपसे प्रथम समयमें जो प्रवेशाग्र निक्षिप्त होता है उससे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाकर वह दुगुणा हीन होता है पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थान जाकर वह दुगणा हीन होता है ।। २८२ ।।
___ शंका-पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितिस्थान जाकर निषेक दुगुणा हीन होता है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान-इसी सूत्रसे जाना जाता है । और एक प्रमाण दूसरे प्रमाणकी अपेक्षा नहीं करता, क्योंकि, ऐसा होने पर अनवस्थाका प्रसङग आता है।
इस प्रकार उत्कृष्ट रूपसे छयासठ सागर और कर्मस्थितिके अन्त तक दुगुणा हीन दुगणा हीन होता हुआ गया है ।। २८३ ।।
___ यह सूत्र सुगम है।
एकप्रदेशगुणहानिस्थानांतर पल्यके असंख्यात प्रथम वर्गमलप्रमाण है और नानागणहानिस्थानान्तर पल्यके प्रथमवर्गमूलके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं ॥२८४ ।।
यहाँ पर भी पहलेके समान एकगुणहानिअध्वानसे नानागुणहानिशलाकायें उत्पन्न करनी
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