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५, ६, २७१ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरपरूवणाए अणंतरोवणिधा ( ३४१
एवं विसेसहीणं विसेसहीणं जाव उक्कस्सेण तिणि पलिदोवमाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि अंतोमुहत्तं ॥२६७॥
एदाओ तिणि वि ट्ठिदीओ जहाकमेण तिण्णं णोकम्माणं जोजेयव्वाओ
तेजा-कम्मइयसरीरिणा तेजा-कम्मइयसरीरत्ताए जं पढमसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं बहुअं ॥२६८॥
जं बिदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीण ॥२६९॥ जं तदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं ॥२७०॥
एवं विसेसहीणं विसेसहीणं जाव उक्कस्सेण छावट्ठिसागरोवमाणि कम्मट्ठिदी ॥२७१॥
एत्थ तेजइयसरीरस्स परूवणे कीरमाणे जहा ओरालियसरीरस्स णिसेयपमाणपरूवणा कदा तहा कायवा, आबाधाभावं पडि विसेसाभावादो । वरि एत्थ णिसेगभागहारो पलिदोवमस्स असंखे०भागो। कम्मइयसरीरस्स पुणो सत्तवाससहस्साणि आबाधं मोत्तूण जं पढमसमए णिसित्तं तं बहुअं । जं बिवियसमए णिसित्तं
इस प्रकार उत्कृष्ट रूपसे तीन पल्य, तेतीस सागर और अन्तर्मुहूर्तके अन्त तक विशेष हीन प्रदेशाग्र निषिक्त होता है ।। २६७ ॥
ये तीनों स्थितियाँ यथाक्रमसे तीन नोकर्मों के लिए योजित कर लेनी चाहिए ।
तैजस शरीर और कार्मण शरीरवाले जीवके द्वारा तैजस शरीर और कार्मण शरीररूपसे जो प्रदेशाग्र प्रथम समयमें निषि क्त होता है वह बहुत है ।। २६८ ॥
जो द्वितीय समयमें प्रदेशाग्र निषिक्त होता है वह विशेष हीन है ।। २६९ ॥ जो तृतीय समयमें प्रदेशाग्र निषिक्त होता है वह विशेष हीन है ।। २७० ॥
इस प्रकार छयासठ सागर और कर्मस्थितिके अन्त तक विशेष हीन प्रदेशान निषिक्त होता है ॥ २७१ ॥
यहां तेजस शरीरकी प्ररूपणा करनेपर जिस प्रकार औदारिकशरीरकी निषेक प्रमाणप्ररूपणा की है उस प्रकारसे करनी चाहिए, क्योंकि, आबाधाके अभावके प्रति औदारिकशरीरसे यहाँ कोई विशेषता नहीं है । इतनी विशेषता है कि यहाँ पर निषेकभागहार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। परन्तु कार्मणशरीरका सात हजार वर्षप्रमाण आबाधाको छोडकर जो प्रदेशाग्र आबाधाके बाद प्रथम समययें निषिक्त होता है वह बहुत है। जो प्रदेशाग्र द्वितीय समयमें
"ता०प्रतो 'परूवणा कीरमाणे ' इति पाठ।। Jain Education International
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