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५, ६, ११६. ) बंधणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा वट्टमाणकाले अप्पिदट्ठाणाणि सांतराणि चेव । अदीदकाले वि केवलोहि फोसिदपत्ते यसरीरवग्गणदाणाणि सांतराणि चेव । कुदो? सव्वजीवेहि अणंतगुणमेत्तकेवलिपा
ओग्गपतेयसरीरहाणेसु सिद्धेहितो असंखेज्जगुणमेत्ताणमेवट्ठाणाणं* फासुवलंभादो। तं जहा-एक्कस्स सिद्धस्स जदि देसूणपुवकोडिमेत्ताणि* चेव पत्तेयसरीरट्राणाणि लभंति तो सवेसि सिद्धाणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगणिदिच्छाए ओवट्टिदाए सिद्धेहितो असंखेज्जगणमेत्ताणि चेव जीवफोसिदढाणाणि लब्भंति । एवं पि च णत्थि; सन्वेसि पुवकोडिमेत्ताउअभावादो । सन्वेसिमपुणरत्तट्टाणाणि चेव होंति त्ति णियमाभावादो च।
पस्समाणे वि सांतराओ। को पस्समाणकालो णाम? एस कालो। कथं तत्थ सांतराओ वच्चदे? सव्वकालमदीदद्धा सव्वजीवरासीए अणंतिमभागो; अण्णहा संसारिजीवाणमभावप्पसंगादो । सव्वकालमदीदकालस्स सिद्धा असंखेज्जदिभागो चेव; छम्मास. मंतरिय णिन्वइगमणणियमादो । एक्केक्कस्स सिद्धस्स देसूणपुव्व कोडिमेत्ताणि चेव पत्तेबसरीरवाणाणि उक्कस्सेण लमंति; के बलिविहारकालस्स देसूण पुत्रकोडिमेत्तस्सेव उवलंभादो। तम्हा पस्समाणेहि सांतराओ चेवेत्ति घेत्तव्वं । सेचीयाए पुण सव्वट्ठाणाणि णिरंतराणि । एदं चेव द्वाणं जीवसहिदं होदि एदाणि ण होंति चेवे ति णियमास्पर्श किये गये प्रत्येकशरीरवर्गणास्थान सान्तर ही हैं, क्योंकि, सब जीवोंसे अनन्तगुणे केवलिप्रायोग्य प्रत्येकशरीरस्थानों में मात्र सिद्धोंसे असंख्यातगुणे स्थानोंका स्पर्श उपलब्ध होता है । यथा-एक सिद्धके यदि पूर्व कोटिमात्र प्रत्येकारीरस्थान उपलब्ध होते हैं तो सब सिद्धोंके कितने प्राप्त होंगे इस प्रकार फल गुणित इच्छामें प्रमाणका भाग देने पर सिद्धोंसे असंख्यातगुणे स्थान ही जीवों के द्वारा स्पर्श किये गये पाये जाते है पर यह भी नहीं है, क्योंकि, एक तो सबके एक पूर्वकोटिप्रमाण आयु नहीं पाई जाती, दूसरे सब जीवों के अपुनरुक्त स्थान ही होते हैं ऐसा कोई नियम नहीं है।
दृश्यमान ( वर्तमान ) कालमें भी सान्तर है। शंका दृश्यमान काल किसे कहते है ? समाधान-यह अर्थात् वर्तमान कालको दृश्यमान काल कहते हैं। शका- इसमें वर्गणायें सान्तर कसे कही जाती हैं ?
समाधान-सर्वदा अतीत काल सब जीव राशिके अनन्तवें भागप्रमाण रहता है, अन्यथा सब जीवों के अभाव होने का प्रसंग आता है।
सिद्ध जीव सर्वदा अतीत कालके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होते हैं, क्योंकि, छह महीने के अन्तरसे मोक्ष जानेका नियम है । तथा एक एक सिद्ध जीवके उत्कृष्टसे कुछ कम एक एक पूर्वकोटि कालमात्र प्रत्येकशरीरस्थान प्राप्त होते है, क्योंकि, केवलीका विहार काल कुछ कम एक पूर्वकोटि मात्र ही उपलब्ध होता है । इसलिए पश्यमान काल में वर्गणायें सान्तर ही होती है, ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए । परन्तु सेचीयकी अपेक्षा सब स्थान निरन्तर होते हैं, क्योंकि, यह स्थान ही जीवसहित होता है और ये स्थान जीवसहित नहीं होते है ऐसा कोई
* ता० प्रती ·-मेत्ताणमवढाणाणं ' इति पाठः ] * ता० प्रती — जदि पुवकोडिमेत्ताणि ' इति पाठः ।
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