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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
कुदो ? पलिदोवमस्स असंखे०भागमेत्तघणंगुलेहि गणिवजगसेडिपमाणत्तादो। तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ १९९ ॥ को गग० ? सेडीए असंखे० भागो। कायजोगी ओघं ।। २०० ।।
कुदो ? सव्वत्थोवा चदुसरीरा । विसरीरा अणंतगुणा । तिसरीरा असंखे०गुणा इच्चेदेहि भेदाभावादो।
ओरालियकायजोगीसु सव्वत्थोवा चदुसरीरा ॥ २०१ ॥ कुदो ? पलिदो० असंखे० भागमेत्तघणंगुलेहि गणिवजगसेडिपमाणत्तादो। तिसरीरा अणंतगुणा ॥ २०२ ।। को गुण? अणंताणि सव्वजीवरासिपढमवग्गमूलाणि।
ओरालियमिस्सकायजोगि-वेउन्वियकायजोगि-वेउध्वियमिस्सकायजोगि-आहारकायजोगि-आहारमिस्सकायजोगीसु णधि अप्पाबहुअं ॥ २०३ ॥
कुदो ? एगपदत्तादो।
क्योंकि, पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण घनाङ्गलोंसे जगश्रेणिको गुणित करने पर जो लब्ध आवे तत्प्रमाण चार शरीरवाले जीव हैं।
उनसे तीन शरीरवाले असंख्यातगणे हैं ॥ १९९ ।। गुणकार क्या है ? जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। काययोगवाले जीवोंमें ओघके समान भंग है ।। २०० ।।
क्योंकि, चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे दो शरीरवाले जीव अनन्तगुणे हैं और उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं इस अल्पबहुत्वकी अपेक्षा ओघसे इनमें कोई भेद नहीं है।
औदारिककाययोगी जीवोंमें चार शरीरवाले सबसे स्तोक हैं ।। २०१॥
क्योंकि, पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण घनाङ्गुलोंसे जगश्रेणिको गुणित करने पर जो लब्ध आवे तत्प्रमाण चार शरीरवाले जीव हैं।
उनसे तीन शरीरवाले अनन्तगुणे हैं ।। २०२॥ गुणकार क्या है ? सब जीव राशिके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण गुणकार है।
औदारिकमिश्रकाययोगी, वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहा. रककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें अल्पबहुत्व नहीं है । २०३ ॥
क्योंकि, इनमें एक ही पद है ।
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