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५, ६, २१७ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अप्पाबहुअपरूवणा ( ३१३ भागो इच्चेदेसु पदेसु असंखेज्जगुणत्तणेण भेदाभावादो, दव्व गुणगारगयभेवाणं विवक्खाभावादो।
मणपज्जवणाणीसु सव्वत्थोवा चदुसरीरा ॥ २१३ ।। विउवमाणमणपज्जवणाणि* संजदाणं सुठ थोवत्तवलंभादो। तिसरीरा संखेज्जगुणा* ॥ २१४ ॥ को गण० ? संखेज्जा समया । केवलणाणीसु णत्थि अप्पाबहुगं ॥ २१५ ॥ कुदो ? एगपदत्तादो।
संजमाणुवादेण संजदा सामाइय-च्छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजवा मणपज्जवणाणिभंगो ॥ २१६ ॥
सम्वत्थोवा चदुसरीरा । तिसरीरा संखेज्जगुणा इच्चेदेहि भेदाभावादो।
परिहारसुद्धिसंजद-सुहमसांपराइयसुद्धिसंजद-जहाक्खावविहारसुद्धिसंजदाणं पत्थि अप्पाबहुगं ॥ २१७ ॥ जीव असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है इत्यादि पदोंमें असख्यातगणेपने की अपेक्षा पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंसे इनमें कोई भेद नहीं है । तथा द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा और गुणकारकी अपेक्षा रहनेवाले भेदकी यहां विवक्षा नहीं है।
मनःपर्ययज्ञानियों में चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं ॥ २१३ ॥ क्योंकि, विक्रिया करनेवाले मनःपर्ययज्ञानी संयत जीव बहुत ही स्तोक पाये जाते हैं। उनसे तीन शरीरवाले जीव संख्यातगणे हैं ॥ २१४ ॥ गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। केवलज्ञानियोंमें अल्पबहुत्व नहीं है ।। २१५ ॥ क्योंकि, उनमें एक ही पद पाया जाता है।
संयममार्गणाके अनुवादसे संयत, सामायिकशद्धिसंयत और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत जीवोंमें मनःपर्ययज्ञानियोंके समान भङग है ॥ २१६ ॥
क्योंकि, चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे तीन शरीरवाले जीव संख्यातगुण हैं इस अल्पबहुत्वकी अपेक्षा मनःपर्ययज्ञानियोंसे इनमें कोई भेद नहीं है।
परिहारशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसाम्परायशुद्धिसंयत और यथाख्यातविहारशद्धिसंयत जीवोंका अल्पबहुत्व नहीं है ।। २१७ ।।
* ता०प्रतो '-माणम (णपज्जव) णाणि 'अ० का. प्रत्योः'-माणमणाणि-' इति पाठः । * ता०प्रतो ' तिसरीरा ( अ ) संखेज्जगुणा ' अ०का० प्रत्यो: 'तिसरीरा असखेज्जगणा इति पाठ।) ० ता.प्रती ' चदूसरीरा। वि (ति) सरीरा 'अ.का. प्रत्यो । चदसरीरा विसरीरा' इति पाठः।
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