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३३०) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, २४२ पदेसपमाणाणुगमेण ओरालियसरीरस्स केवडियं पदेसग्गं ॥२४२।।
सेससरीरपडिसेहलो ओरालियसरीरणिद्देसो । संखेज्जा-संखेज्जाणंतसंखाओ तिणि गवणवमेवाओ केवडिए त्ति गिद्देसो सो अवेक्ख । दिदि-अणुभागादिपडि. सेहफलो पदेसग्गणिद्देसो । सेसं सुगमं । अभवसिद्धिएहि अणंतगुणा सिद्धाणमणंतभागा ॥ २४३ ॥
एदमोरालियसरीरस्स जहण्णेण उक्कस्सेण य पदेसग्गपमाणं सुत्तं परूवेदि। विस्सासवचयेहि सह घेप्पमाणे सव्वजोवेहि अणंतगणा ओरालियपरमाणू होति त्ति भणिदे ण, ओरालियसरीरणामकम्मोदएण जीवम्मि संबद्धपोग्गलाण चेव ओरालियसरीरत्तम्भवगमादो। ण च तत्थतणविस्सासुवचओ ओरालियणामकम्मणिदो, ओरा. लियणोकम्मणिद्ध ल्हक्खगणेण तत्थ तेसि संबंधादो। तम्हा सिद्धाणमणंतभागमेत्ता चेव ओरालियसरीरपरमाणू होंति त्ति घेत्तन्वं ।
एवं चदुण्हं सरीराणं ॥ २४४ ।।
औदारिक आदि नाम गौण्य अर्थात् सार्थक नाम हैं। यहां इनकी नामनिरुक्ति कहनेका यही अभिप्राय है।
इस प्रकार नामनिरुक्ति अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। प्रदेशप्रमाणानुगमकी अपेक्षा औदारिकशरीरके कितने प्रदेशाग्र हैं। २४२ ॥
शेष शरीरोंका प्रतिषेध करने के लिए ' औदारिकशरीर' पदका निर्देश किया है । 'कितना है' पदका निर्देश नौ नौ भेदरूप संख्यात, असंख्यात और अनन्त इन तीन संख्याओंकी अपेक्षा करता है। स्थिति और अनुभाग आदिका निषेध करना प्रदेशाग्र पदके निर्देशका फल है। शेष कथन सुगम है।
अभव्योंसे अनन्तगणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ।। २४३ ॥ यह सूत्र औदारिकशरीरके जघन्य और उत्कृष्ट प्रदेशप्रमाणका कथन करता है।
शंका - विस्रसोपचयोंके साथ ग्रहण करनेपर औदारिकशरीरके परमाणु सब जीवोंसे अनन्तगुणे होते हैं ?
समाधान - नहीं, क्योंकि औदारिकशरीर नामकर्मके उदयसे जीवमें सम्बन्धको प्राप्त हुए पुद्गलोंको ही औदारिकशरीररूपसे स्वीकार किया गया है। किंतु वहाँ रहनेवाला विस्रसोपचय
औदारिकशरीर नामकर्मके उदयसे नहीं उत्पन्न हुआ है, क्योंकि औदारिक नोकर्म के स्निग्ध और रक्षगुणके कारण वहाँ विस्रसोपचय परमाणुओंका सम्बन्ध हुआ है। इसलिए सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण ही औदारिकशरीरके परमाणु होते हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए ।
इसी प्रकार चार शरीरोंके प्रदेशाग्र होते हैं ।। २४४ ॥
४ प्रतिषु ' उवेक्खदे ' इति पाठः। 8 अप्रतो ' -मेत्तो चेव ' इति पाठ।।
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