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५, ६, २३८ )
योगद्दारे सरिसरीरपरूवणाए णामणिरुत्ती
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अविभागपडिच्छेदा अनंतगुणा । कम्मइयसरीरस्स अविभागपडिच्छेजा अनंतगुणा । एवं कारगरसप्पाबहुअं विस्सासुवचयाणं कथं होदि ? ण, विस्तासुवचयमहिकिच्च परुविदअप्पा बहुअस्स अण्णहाभावविरोहादो । जहण्णादो उक्कस्सस्स असंखेज्जगुणत्तं कुवो सिद्ध ? अण्णहा जहणपत्तेयसरीरवग्गणादो उक्कस्सियाओ अनंतगुणत्तप्पसंगादो । ण च एदं, उक्कसपत्तेयसरीरवग्गणाए हेट्ठा जहण्णबादरणिगोदवग्गणाए उत्पत्तिपसंगादो । जहण्णविस्सासुवचयादो सत्थाणुक्कस्स विस्सासुवचओ अनंतगुणो त्ति सुत्तेण कथं दस्स विरोहो ? ण, जीवमुक्क पंचसरीरपरमाणु द्विदविस्सासुवचयमहिकिच्च तदपबहुअपउत्तीए । तदो ओरालियसरीरस्स ओगाहणादो चेव थूलत्तं घेत्तव्वं । fafaeइड्ढगुणजुत्तमिति वेउब्वियं ॥ २३८ ॥
अणिमा महिमा लहिमा पत्ती पागम्मं ईसित्तं वसित्तं कामरूवित्तमिच्चेवमादियाओ अणेयविहाओ इद्धीओ णाम । एदेहि इद्विगुणेहि जुत्तमिति काऊण वेउन्दियं त्ति भणिदं ।
अनन्तगुणे हैं। उनसे तैजसशरीर के अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं। उनसे कार्मणशरीर के अविभागप्रतिच्छेद अनन्तगुणे हैं ।
शंका-- यह कारणसम्बन्धी अल्पबहुत्व विस्रसोपचयोंका कैसे हो सकता है ? समाधान -- नहीं, क्योंकि, विस्रसोपचयको अधिकृत कर प्ररूपित किये गये अल्पबहुत्व के अन्यथारूप होने में विरोध है ।
शंका--- अपने जघन्यसे अपना उत्कृष्ट असंख्यातगुणा है यह किस प्रमाणसे सिद्ध है ? समाधान -- यदि ऐसा न माना जावे तो जघन्य प्रत्येकशरीरवर्गणासे उत्कृष्ट वर्गणा अनन्त गुणे होने का प्रसंग आता है । परन्तु यह है नहीं, क्योंकि, यह होनेपर उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरवर्गणासे नीचे जघन्य बादर निगोदवर्गणाकी उत्पत्तिका प्रसंग आता है ।
शंका-- जघन्य विस्रसोपचयसे स्वस्थानमें उत्कृष्ट विस्रसोपचय अनन्तगुणा है इस सूत्र के साथ इस व्याख्यानका विरोध कैसे नहीं है ?
समाधान-- - नहीं, क्योंकि, जीवमुक्त पाँच शरीरोंके परमाणुओंपर स्थित हुए विस्रसोपचयको अधिकृत करके उस अल्पबहुत्वकी प्रवृत्ति होती है ।
इसलिए औदारिकशरीरका अवगाहनाकी अपेक्षा ही स्थूलपना ग्रहण करना चाहिए । विविध गुणऋद्धियोंसे युक्त है, इसलिए वैक्रियिक हैं ॥ २३८ ॥
अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्त्र, वशित्व और कामरूपित्व इत्यादि अनेक प्रकारकी ऋद्धियाँ हैं। इन ऋद्धिगुणोंसे युक्त है ऐसा समझकर वैक्रियिक है ऐसा कहा है ।
ॐ ता० प्रती ' विविहगुणजुत्तमिदि इति पाठ: 1
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