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छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
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( ५, ६, २१८ कुदो ? एगपदत्तादो।
संजवासंजदा विभंगणाणिभंगो ॥ २१८ ॥
कुदो ? सव्वत्थोवा चदुसरीरा। तिसरीरा असंखेगणा । को गुणगारो ? आवलि० असंखे० मागो इच्चेदेसु असंखेज्जगुणत्तणेण भेदाभावादो ।
असंजद-अचक्खुदंसणी ओघं ॥ २१९ ॥
लेस्साणुवादेण किण्ण-णील-काउलेस्सिया भवियाणुवादेण भवसिद्धिय-अभवसिद्धिया ओघं ॥ २२० ॥
कुदो ? सम्वत्थोवा चदुसरीरा। विसरीरा अणंतगणा । तिसरीरा असंखे०. गुणा। को गुण ? संखेज्जावलियाओ इच्चेदेण भेदाभावादो।
दसणाणुवावेण चक्खुदंसणी ओहिदसणी तेउलेस्सिया पम्मलेस्सिया पंचिदियपज्जत्ताणं भंगो ॥ २२१ ॥
कुदो ? पदसंखाए असंखेज्जगणतणेण च भेदाभावादो। अत्थदो पुण अस्थि
क्योंकि, इन मार्गणाओंमें एक ही पद है। संयतासंयतोंमें विभङगज्ञानियोंके समान भंग है ॥ २१८ ॥
क्योंकि, चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। इस प्रकार इनमें असंख्यातगुणत्वकी अपेक्षा कोई भेद नहीं है ।
असंयत और अचक्षदर्शनवाले जीवोंका भंग ओघके समान है ॥ २१९ ॥
लेश्यामार्गणाके अनुवादसे कृष्णलेश्यावाले नीललेश्यावाले और कापोतलेश्यावाले तथा भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्य और अभव्य जीवोंमें ओघके समान भंग है ।। २२० ॥
क्योंकि, चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे दो शरीरवाले जीव अनन्तगुणे हैं और उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? असंख्यात आवलियां गुगकार है। इस प्रकार इस अल्पबहुत्वकी अपेक्षा यहां कोई भेद नहीं है।
दर्शनमार्गणाके अनुवादसे चक्षदर्शनवाले और अवधिदर्शनवाले तथा पोतलेश्यावाले और पद्मलेश्यावाले जीवोंमें पञ्चेन्द्रियपर्याप्तकोंके समान भंग है ।। २२१ ॥
क्योंकि, पदोंकी संख्या और असंख्यातगुणत्वको अपेक्षा कोई भेद नहीं है। अर्थकी
४ म०प्रतिपाठोऽयम् । ता. प्रतौ सूत्रमिदं पृथक नोपलभ्यते 1 अ० प्रती अस्मिन् सूत्रे ' ओघं ' इति
पाठः तथा का प्रती ' असंजद ' इति पाठो नोपलभ्यते ।
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