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सरीरपरूवणा
सरीरपरूवणदाए तत्थ इमाणि छ अणुयोगद्दाराणि- णामणिरुत्ती पदेसपमाणाणुगमो जिसेयपरूवणा गुणगारो परमीमांसा अप्पाबहुए त्ति ॥ २३६ ॥
णामणिरुत्ती किमट्ठ वच्चदे ? पंचण्णं सरीराणं णामाणि गोण्णाणि णोअगोण्णाणि त्ति जाणावणटुं। पदेसपमाणाणुगमो किमळं परूविज्जदे ? " पंचण्णं सरीराणं पदेसपमाणे * अणवगए संते तेसिमवगमाणववत्तीदो। णिसेयपरूवणा किमळं वच्चदे ? पंचण्णं सरीराणं समयपबद्धाणं पदेसपिंडस्स बंधमागच्छंतस्स कालो सरिसो ण होदि किंतु विसरिसो होदि । एक्केक्ककालविसेसे एत्तिया एत्तिया परमाणु होति त्ति जाणावणठं च णिसेयपरूवणा कीरते । जहण्णदव्वादो उक्कस्सदश्वमेवदियगणं होदि ति जाणावणठें पंचण्णं सरीराणं पदेसमाहप्पजाणा
शरीरप्ररूपणाकी अपेक्षा वहां ये छह अनयोगद्वार होते हैं- नामनिरुक्ति, प्रदेशप्रमाणानुगम, निषेकप्ररूपणा, गुणकार, पदमीमांसा और अल्पबहुत्व ।। २३६ ।।
नामनिरुक्तिका कथन किसलिए करते हैं ? पाँच शरीरोंके नाम गौण्य हैं नोगौण्य नहीं हैं इस बातका ज्ञान कराने के लिए नामनिरुक्ति अधिकार आया है। प्रदेशप्रमाणानुगमका कथन किसलिए करते हैं? पाँच शरीरोंके प्रदेशोंके प्रमाणका ज्ञान नहीं होने पर उनका ज्ञान नहीं हो सकता, इसलिए प्रदेशप्रमाणानुगम अधिकार आया है। निषेकप्ररूपणा किसलिए करते हैं? पाँच शरीरोंके समयप्रबद्धोंके प्रदेशपिण्डका बंध होने पर उसका काल सदृश नहीं हैं किंतु विसदृश है तथा एक एक काल विशेषमें इतने परमाणु होते हैं इस बातका ज्ञान कराने के लिए निषेकप्ररूपणा करते हैं। जघन्य द्रव्यसे उत्कृष्ट द्रव्य इतना गुणा है इस बातका ज्ञान कराने के लिए और पाँच शरीरोंके प्रदेशोंके माहात्म्यको जानने के लिए गुणकार अधिकारका कथन करते हैं।
ता.का. प्रत्योः 'परूविज्जदे ? पंचणं ' इति पाठ।। *ता०का० प्रत्यो। 'पदेसपमाणं' इति पाठ 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only
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