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५, ६, २३२ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अप्पाबहुअपरूवणा
( ३१७
तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ २२९ ।। को गुण ? आवलि० असंखे० भागो।
सम्मामिच्छाइट्ठी संजदासंजदाणं भंगो ॥ २३० ॥ कुदो ? सम्वत्थोवा चदुसरीरा। तिसरीरा असंखे० गुणा । को गुण ? आवलि० असंखे०भागो इच्चेदेहि भेदाभावादो।
मिच्छाइट्ठी ओघं ॥ २३१ ॥
सव्वत्थोवा चदुसरीरा। विसरीरा अणतगुणा। तिसरीरा असंखेगणा इच्चेदेहि भेदाभावादो।
सणियाणुवादेण सण्णी पंचिवियपज्जत्ताणं भंगो ॥ २३२ ।।
कुदो ? सव्वत्थोवा चदुसरीरा । विसरोरा असंखे०गणा। को गुण ? सेढीए असंखे० भागो। तिसरीरा असंखे० गुणा। को गुण ? आवलि० असंखे०भागो इच्चेदेहि भेवाभावादो।
उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगणे हैं ॥ २२९ ॥ गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। सम्यग्मिथ्यावृष्टियोंमें संयतासंयतोंके समान भङग है । २३० ।
क्योंकि, चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुण है। गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार इस प्रकार इसकी अपेक्षा कोई भेद नहीं है।
मिथ्याष्टियोंमें ओघके समान भङग है । २३१ ।
क्योंकि, चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे दो शरीरवाले जीव अनन्तगणे हैं। उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं इस प्रकार इस अल्पबहुत्वकी अपेक्षा ओघसे इनमें कोई भेद नहीं है। संज्ञी मार्गणाके अनुवादसे संज्ञियोंमें पञ्चेन्द्रियपर्याप्तकोंके समान भङग है ।२३२।
क्योंकि, चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे दो शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। इस प्रकार इस अल्पबहुत्वकी अपेक्षा पञ्चेन्द्रिय पर्याप्तकोंसे संज्ञी जीवोंमें कोई भेद नहीं है।
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