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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ६, १२६.
समवाओ देससव्वसमवायभेएण दुविहो । तत्थ देससमवायपडिसेहट्ठ भणदि - 'पुट्ठा य एयमेएण' एक्क मेक्केण सव्वावयवेहि पुट्ठा संता चेव ते अच्छंति । णो अबद्धा णो अट्ठा व अच्छंति । अवहारणं कुदो लब्भदे ? अवहारणट्ठहुसद्द संबंधादो । ते केत्तिएत्ति भणिदे संखेज्जा असंखेज्जा वा ण होंति किं तु ते जीवा अणंता चेव होंति । केण* कारणेण होंति त्ति भणिदे 'मूलयथूहल्लयादीहि ' मूलयथूहल्लयादि - कारणेहि होंति । एत्थ आदिसद्देण अण्णे वि वणप्फदिभेदा घेत्तव्वा । एदेण बादरणिगोदाणं जोणी परूविदा ण सुहुमणिगोदाणं जलथलआगासेसु सव्वत्थ तेसि जोणिदंसणादो । भावत्थो - मूलयथूहल्लयादीणं सरीराणि बादरणिगोदाणं जोणी होंति । ते तेसि मूल्य हल्लयादीणं पत्तेयसरीरजीवाणं बादरणिगोदपदिट्टिदा त्ति सण्णा । वृत्तं च
तेण तत्थ मूलयथूहल्लयादीणं मणुसादिसरीरेसु असंखेज्जलोगमेत्ताणि णिगोदसरीराणि होंति । तत्थ एक्केक्कम्हि णिगोदसरीरे अनंताणंता बादरसुहुमणिगोदजीवा
बीजे जोणीभूदे जीवो वक्कमइ सो व अण्णो वा । विय मूलादीया ते पत्तेया पढमदाए || १७ ॥
समवेत होकर रहते हैं । वह समवाय देशसमवाय और सर्वसमवायके भेदसे दो प्रकारका है । उनमें से देशसमवायका प्रतिषेध करनेके लिए कहते हैं- 'पुठ्ठा य एयमेएण' परस्पर सब अवयवों से स्पृष्ट होकर हीं वे रहते हैं । अबद्ध और अस्पृष्ट होकर वे नहीं रहते ।
शंका- अवधारण कैसे प्राप्त होता है ?
समाधान- अवधारणवाची हु शब्दके सम्बन्धसे प्राप्त होता है ।
वे कितने हैं ऐसा पूछने पर कहते हैं - वे संख्यात और असंख्यात नहीं होते हैं किन्तु वे जीव अनन्त ही होते हैं । वे किस कारणसे होते हैं ऐसा पूछने पर कहते हैं कि 'मूलयथूहल्लयादीहि' अर्थात् मूली, थूवर और आर्द्रक आदि कारणसे होते हैं । यहाँपर आये हुए 'आदि' शब्द से वनस्पतिके अन्य भेद भी ग्रहण करने चाहिए। इसके द्वारा बादर निगोदोंकी योनि कही गई है, सूक्ष्म निगोदोंकी नहीं, क्योंकि, जल, थल और आकाश में सर्वत्र उनकी योनि देखी जाती है। भावार्थ यह है-मूली, थूवर और आर्द्रक आदिके शरीर बादर निगोदोंकी योनि होते हैं, इसलिए मूली, थूवर और आर्द्रक आदिके प्रत्येकशरीर जीवोंकी बादरनिगोदप्रतिष्ठित संज्ञा है । कहा भी है-
योनिभूत बीज में वही जीव उत्पन्न होता है या अन्य जीव उत्पन्न होता है । और जो मूली आदि हैं वे प्रथम अवस्था में प्रत्येक हैं ॥ १७ ॥
इसलिए वहां मूली, थूवर और आर्द्रक आदिक तथा मनुष्यों आदिके शरीरोंमें असंख्यात लोकप्रमाण निगोदशरीर होते हैं। वहां एक एक निगोदशरीरमें अनन्तानन्त बादर
अ०का प्रत्योः 'अवहारणसहसंबंधादो' इति पाठः । * ता० प्रती होंति । 'केण' इति
दीणं ( णि )
सरीराणि' इति पाठः ।
पाठ: ।ता० प्रती 'भणिदे मूलयथूहल्लयादीहि कारणेहि' इति पाठः । * ता० प्रतो
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