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' छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
- तिसरीरा संखेज्जगुणा ॥ १८४ ॥ - सुगमं ।
.. [मणुसअपज्जत्तो पंचिदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो ॥ १८५॥ - तं जहा- सम्वत्थोवा विसरीरा। तिसरीरा असंखेज्जगणा । को गुणगारो ? आवलियाए असंखे०भागो ।
देवगदीए देवा सव्वत्थोवा विसरीरा ॥ १८६ ॥ कुदो ? सगरासी आवलि.* असंखे०भागेण खंडिदेय (खंड-) पमाणत्तादो। तिसरीरा असंखेज्जगुणा ॥ १८७ ॥
को गुण०? आवलि० असंखे० भागो। 'कुदो? संखेज्जवासाउअदेवेसु उप्पज्जमाणजीवाणं बहुत्तुवलंभादो ।
एवं भवणवासियप्पहुडि जाव अवराइदविमाणवासियदेवा त्ति णेयन्वं ॥ १८८ ॥
णवरि जोइसियप्पहुडि जाव सदर-सहस्सारदेवेसु गणगारो पलिदो० असंखे०भागो होदि; तत्थ संखेज्जवासाउआणमभावादो। आणद-पाणदप्पहुडि जाव अवराइदं
उनसे तीन शरीरवाले मनुष्य संख्यातगणे हैं ।। १८४ ।। यह सूत्र सुगम है। मनष्य अपर्याप्तकोंमें पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंके समान भंग है । १८५ ।
यथा- दो शरीरवाले सबसे स्तोक हैं। उनसे तीन शरीरवाले असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है।
देवगतिकी अपेक्षा दो शरीरवाले देव सबसे स्तोक हैं। १८६ ।
क्योंकि, अपनी राशिको आवलिके असंख्यातवें भागसे भाजित करने पर जो एक भाग लब्ध आवे तत्प्रमाण दो शरीरवाले देव है ।
उनसे तीन शरीरवाले देव असंख्यातगणे हैं । १८७ । __ गुणकार क्या है ? ' आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है क्योंकि, संख्यात वर्षकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न होनेवाले जीव बहुत पाये जाते हैं।
इसी प्रकार भवनवासियोंसे लेकर अपराजित विमानवासी तकके देवोंमें जानना चाहिए । १८८ ।
इतनी विशेषता है कि ज्योतिषियोंसे लेकर शतार सहस्रार कल्प तकके देवोंमें गुणकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है, क्योंकि, वहां पर संख्यात वर्षकी आयुवाले देवोंका अभाव
४ ता० प्रती · देवा ( वेसु ) सव्वत्थोवा' इति पाठः । * ता० प्रती । सगरासी ( सि ) आवलि ' इति पाठः ।
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