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५, ६, १८३ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अप्पाबहुअपरूवणा (३०५ कुणदि तो पलिदो० असंखे०भागेण गणिवसंखेज्जावलियाओ सव्वजीवरासिस्स भाग. हारो होज्ज । ण च एवं, तहाणवलंभादो तम्हा असंखे० भागो चेव उजगदीए उप्पज्जदि त्ति घेत्तव्वं ।
मणुसगदीए मणुसा पंचिदियतिरिक्खाणं भंगो ॥ १८१ ॥
तं जहा- सव्वत्थोवा चदुसरीरा, संखेज्जपमाणत्तादो। विसरीरा असंखेज्जगुणा । को गुण ? विसरीराणं संखे० भागो। तस्स को पडिभागो ? चदुसरीरसंखेज्जजीवा । अथवा गुणगारो सेडीए असंखे० भागो। तिसरीरा असंखेज्जगणा। को गुण ? आवलि० असंखे० भागो । पलिदो० असंखे० भागो गुणगारो होवि तिर पुव्वं व परवेयव्वं ।
मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु सव्वत्थोवा चदुसरीरा ॥ १८२ ।। विउवमाणाणमाहारसरीरेण परिणमंताणं अइथोवत्तदसणादो।
विसरोरा संखेज्जगुणा ॥ १८३ ।। विउवमाणजीहितो विग्गहगदीए उप्पज्जमाणजीवाणं संखेज्जगणत्तवलंभादो।
भागप्रमाण जीवराशि विग्रह करती है तो पल्यके असंख्यातवें भागसे संख्यात आवलियोंके गुणित करने पर समस्त जीवराशिका भागहार होवे । परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, उस प्रकार भागहार नहीं उपलब्ध होता, इसलिए असंख्यातवें भागप्रमाण राशि ही ऋजुगतिसे उत्पन्न होती है ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए ।
मनष्यगतिको अपेक्षा मनुष्योमें पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान भड्ग है ।१८१॥
यथा- चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, उनका प्रमाण संख्यात है। उनसे दो शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? दो शरीरवालोंके संख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। उसका प्रतिभाग क्या है ? चार शरीरवाले संख्यात जीव प्रतिभाग है। अथवा गुणकार जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। उनसे तीन शरीरवाले जीव असंख्यातगुणे हैं । गुणकार क्या है ? आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है। पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है ऐसा पहलेके समान कहना चाहिए । मनुष्यपर्याप्त और मनष्यिनियोंमें चार शरीरवाले जीव सबसे स्तोक हैं ।१८२॥
क्योंकि, विक्रिया करनेवाले और आहारक शरीररूपसे परिणत हुए मनुष्य अति स्तोक देखे जाते हैं।
उनसे दो शरीरवाले मनुष्य संख्यातगणे हैं ।।१८३॥
क्योंकि, विक्रिया करनेवाले जीवोंसे विग्रहगतिसे उत्पन्न होनेवाले उक्त मनुष्य संख्यातगुणे उपलब्ध होते हैं।
8 ता० प्रसो ' गुणगारो ( ण- ) होज्जदि त्ति' इति पाठ।।
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