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२४२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
( ५, ६, १४२ वाउक्काइयअपज्जत्ता सहमतेउकाइय-सहमवाउकाइयपज्जत्ता अपज्जत्ता तसकाइयअपज्जत्ता अस्थि जीवा बिसरीरा तिसरीरा ॥१४२॥
विग्गहगदीए बिसरीरा, अण्णत्थ तिसरीरा । कुदो? एदेसु वेउव्विय-आहारसरीराणमभावादो।
तेउक्काइया वाउक्काइया बादरतेउक्काइया बादरवाउक्काइया तेसि पज्जत्ता तसकाइया तसकाइयपज्जत्ता ओघं ॥१४॥
एत्थ बिसरीर-तिसरीर चदुसरीराणमुवलंभादो । कथमेदेसु चदुसरीरसंभवो? ण, एत्थ विउव्वमाणजीवाणमुवलंभादो।
जोगाणुवादेण पंचमणजोगी पंचवचिजोगी ओरालियकायजोगी अस्थि जीवा तिसरीरा चदुसरीरा ॥१४४।।
बिसरीरा णत्थि, विग्गहगईए मण-वचि-ओरालियकायजोगीणमभावादो। उत्तरसरीरं विउविदाणं कथमोरालियकायजोगो? ण, उत्तरसरीरस्स विओरालियवायुकायिक अपर्याप्त, सूक्ष्म अग्निकायिक और सूक्ष्म वायुकायिक तथा इनके पर्याप्त और अपर्याप्त और त्रसकायिक अपर्याप्त जीव दो शरीरवाले और तीन शरीरवाले होते हैं ॥ १४२॥
विग्रहगतिमें दो शरीरवाले और अन्यत्र तीन शरीरवाले होते हैं, क्योंकि, इनमें वैक्रियिकशरीर और आहारकशरीरका अभाव है ।
अग्निकायिक, वायुकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर वायुकायिक, उनके पर्याप्त, त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीवोंमें ओघके समान भंग है ॥१४३॥
इन जीवोंमें दो शरीर, तीन शरीर और चार शरीर उपलब्ध होते हैं । शंका- इनमें चार शरीर कैसे सम्भव है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, इनमें विक्रिया करनेवाले जीव पाये जाते हैं, इसलिए उस समय चार शरीर सम्भव हैं।
योगमार्गणाके अनुवादसे पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी और औदारिककाययोगी जीव तीन शरीरवाले और चार शरीरवाले होते हैं ॥ १४४ ॥
इनमें दो शरीरवाले जीव नहीं होते, क्योंकि, विग्रहगतिमें मनोयोगी, वचनयोगी और आदारिककाययोगी जीवोंका अभाव हैं।
शंका- उत्तर शरीरकी विक्रिया करनेवाले जीवोंके औदारिककाययोग कैसे सम्भव है ? समाधान- नहीं, क्योंकि, उत्तर शरीर भी औदारिककाय है । यदि कहा जाय कि
* अप्रतौ 'तेउकाइया बादरते उक्काइया' इति पाठः ।
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