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छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
(५, ६, १६७.
सागरोवमाणि देवाउअं बंधिदूण आणद - पाणदकप्पवासियदेवेसु उववण्णो, छहि पज्जती हि पज्जत्तयदो होदूण अट्ठारससागरोवमाणं बहि तिष्णि *वि करणाणि कादूण उवसमसम्मत्तं घेत्तूण वेदगं पडिवण्णो । पुणो अट्ठारससागरोवमाणि सम्मत्तमगुपालेण fore तीहि णाणेहि कालं कादृण पुव्वकोडाउओ मणुस्सो जादो । पुणो तिणाणी चेव होण पुव्वकोडीए ऊणवीससागरोवमट्ठिदीओ देवो जादो । तत्तो चुदो पुव्वकोडाउओ मणुस्सो जादो । पुणो दोपुव्वकोडीहि ऊणअट्ठावीस सागरोवमट्टिदीओ देवो होण पुणो पुव्वकोडाउओ मणुस्सो जादो । पुणो तेत्तीसाउअं बंधिदूण अंतोमुहुत्तावसेसे खइयसम्माइट्ठी होण सव्वट्ट े उबवण्णो । तदो पुव्वकोडाउओ मणुस्सो होण अंतोमुहुत्तावसेसे सिज्झिदव्वए त्ति केवलणाणी जादो । एवमुवसमसम्मत्तं तोमुहुत्तेण पुव्व कोडिअम्भ हियतेत्तीससागरोवमेहि सादिरेयाणि छावट्टिसागरोवमाणि । चदुसरीरा ओघं । मणपज्जवणाणीसु तिसरीरा केवचिरं का० होंति ? णाणाजीवं प० सव्वद्धा । एगजीवं प० जह० एगसमओ, उक्क ० पुव्वकोडी देसूणा । चदुसरीरा ओघं । केवलणाणी० अवगदवेदभंगो । णवरि एगसमओ णत्थि ।
संजमाणुवादेण संजदेसु तिसरीराणमवगदवेदभंगो । चदुसरीरा ओघं । सामाइय
अठारह सागर प्रमाण देवायुका बन्ध करके आनत प्राणत कल्पवासी देवोंमें उत्पन्न हुआ । छह पर्याप्तियोंसे पर्याप्त होकर अठारह सागरके बाहर तीनों ही करणोंको करके उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण करके वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । पुनः अठारह सागर काल तक सम्यक्त्वका अनुपालन करके विनाशको नहीं प्राप्त हुए तीन ज्ञानोंके साथ मरकर पूर्वकोटिकी आयुवाला मनुष्य हुआ। पुनः तीनों हो ज्ञानवाला होकर पूर्वकोटिसे कम बीस सागरकी स्थितिवाला देव हुआ । वहाँसे च्युत होकर पूर्वकोटिकी आयुवाला मनुष्य हुआ । पुनः दो पूर्वकोटि कम अट्ठाईस सागरकी आयुवाला देव होकर पुनः पूर्वकोटिकी आयुवाला मनुष्य हुआ । पुनः तेतीस सागरप्रमाण आयुका बन्ध करके अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहने पर क्षायिक सम्यग्दृष्टि होकर सर्वार्थसिद्धिमें उत्पन्न हुआ । अनन्तर पूर्वकोटिको आयुवाला मनुष्य होकर अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर सिद्ध होनेवाला है इसलिए केवलज्ञानी हो गया। इस प्रकार उपशमसम्यक्त्व के अन्तर्मुहूर्त और साधिक पूर्वकोटि तेतीस सागर अधिक छयासठ सागरकाल प्राप्त होता हैं । चार शरीरवाले जीवों के कालका भंग ओघके समान हैं । मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें तीन शरीरवाले जीवोंका कितना काल हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण हैं । चार शरीरवालोंके कालका भंग ओघके समान है। केवलज्ञानी जीवों में अपगतवेदवाले जीवोंके समान भंग हे । इतनी विशेषता है कि एक समय काल नहीं है ।
संयममागंणाके अनुवादसे संयतोंमें तीन शरीरवालोंमें अदगत वेपवाले जीवोंके समान भंग है । चार शरीरवाले जीवोंका कालका भंग ओघके समान है । सामायिकसंयत और छेदो* अ० प्रती ' - सागरोवमाण भहिवं तिण्णि' इति पाठ: ।
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