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५, ६, १६७ ) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अंतरपरूवणा ( २८७ पंचिनियतिरिक्खअपज्जत्त० विसरीराणमंतरं केवचिरं का होदि ? जाणाजी. प. जह० एगसमओ, उक्क. अंतोमहत्तं । एगजीवं प. जह० खद्दाभवग्गहणं बिसमऊणं, उक्कस्सेण पण्णारस अंतोमहत्ताणि। तिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होदि?णाणाजी. प० णत्थि अंतरं णिरंतरं । एगजीनं प० जह० एगसमओ, उक्क० बेसमया।
मणसगदीए मणस्सेसु मणस-मणसपज्जत्त-मणसिणीसु बिसरीराणमंतरं केवचिर का० होदि ? जाणाजी. प. जह• तिण्णं पि एगसमओ, उक्क० चदुवीस महुत्ता । एगजीनं प० जह. खुद्दाभवग्गहणं बिसमऊणं अतोमहत्तं बिसमऊणं, उक्क पुश्वको. डिपुधत्तं । तिसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजी. प. पत्थि अंतर गिरंतरं । एगजीनं प. जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमहत्तं । चदुसरीराणमंतरं । केवचिर का होदि ? णाणाजी. पडुच्च पत्थि अंतर णिरंतरं । एगजीनं प. जह. अंतोमहत्तं, उक्क. तिणि पलिदो. पुश्वकोडिपुधत्तेणमाहियाणि । मणसअपज्जत्त.
तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें दो शरीरवालोंका अन्तरकाल क्तिना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर दो समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह अन्तर्मुहुर्त है। तीन शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंको अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, निरन्तर है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है।
विशषार्थ-सामान्य तिर्यञ्चोंका भंग ओघके समान है यह स्पष्ट ही है । पञ्चेन्द्रियर्यञ्च आदिमें दो शरीवाले आदिका अन्तर घटित करते समय तिर्यञ्च तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न होते हैं इस बात को ध्यान में रखकर अन्तरको घटित करना चाहिए। यहाँ जो विशेष बात कहनी है वह यह कि पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च, पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त, पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनी और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त जीवोंमें लगातार यदि कोई जाव उत्पन्न न हो तो अधिकसे अधिक प्रथम में अन्तर्महुर्त काल तक, दूसरे-तोसरे भेदमें चौबीस मुहूर्त तक और अन्तके भेदमें अन्तर्मुहुर्त तक नहीं उत्पन्न होता । इन सबमें नहीं उत्पन्न होने का काल कमसे कम एक समय है यह स्पष्ट ही है। यही कारण है कि इनमें नाना जीवों की अपेक्षा दो शरीरवालोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अपने अपने अनुत्पत्ति के काल प्रमाण कहा है । इसी प्रकार आगे भी अपनी अपनी विशेषताका विचार कर अन्तरकाल घटित कर लेना चाहिए ।।
मनुष्यगतिकी अपेक्षा मनुष्योंमें मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनष्यिनियोमें दो शरीरवालों का अन्तरकाल कितना है? नाना जोवोंको अपेक्षा तीनोंका ही जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त है । एक जीवको अपेक्षा जघन्य अन्तर प्रथम में दो समय कम क्षुल्लक भवग्रहणप्रमाण और शेष दोमें दो समय कम अन्तर्मुहुर्त प्रमाण और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । तीन शरीरवालों का अन्तरकाल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। निरन्तर है । एक जोवको अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्महर्त है । चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटि
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