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५, ६, १६७ )
बंषणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणाए अंतरपरूवणा ( २९५
अंतोमहत्तं । चदुसरीराणमंतरं केवचिरं का. होदि ? जाणाजी० प० पत्थि अंतरं । एगजीवं प० जह० अंतोमहत्तं, उक्क० तिणि वाससहस्साणि देसूणाणि। ओरालियमिस्सकायजोगि० तिसरीराणमंतरं केवचिरं का. होवि? गाणेगजी० प० णस्थि अंतरं। वेउग्वियकायजोगि० तिसरीराणं णाणेगजी० प० उभयदो त्थि अंतरं । वेउन्वियमिस्स० तिसरीराणमंतरं केवचिरं का० होदि ? जाणाजी०प० जह० एगमसओ, उक्क० बारसमुहुत्ता । एगजीवं प. उभयदो पत्थि अंतरं । आहारदुगस्स चदुसरीराणमंतरं केवचिरं का० होदि ? जाणाजी० ५० जह० एगसमओ, उक्क० वासपुधत्तं । एगजीवं ५० जत्थि अंतरं । कम्मइयकायजोगि० बिसरीराणमंतरं णाणेगजी० प० उभयदो णत्थि अंतरं। तिसरीराणमंतरं केवचिरं कालादो होदि? जाणाजी० प० जह० एगमसओ, उक्क० वासपुधत्तं । एगजीवं प० णत्थि अंतरं । उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहुर्त है । चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अंतर्महुर्त है और उत्कृष्ट अंतर कुछ कम तीन हजार वर्षप्रमाण है। औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें तीन शरीरवालोंका अन्तर काल कितना है ? नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें तीन शरीरवाले जीवोंका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा उभयतः अन्तरकाल नहीं है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें तीन शरीरवालोंका अंतरकाल कितना है? नानाजीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है। एक जीवकी अपेक्षा उभयतः अन्तरकाल नहीं है। आहारकद्विकमें चार शरीरवालोंका अन्तरकाल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। कार्मणकाययोगी जीवोंमें दो शरीरवालोंका अन्तर काल नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा उभयतः अन्तरकाल नहीं है। तीन शरीरवालोका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अंतर वर्षपृथक्त्व-प्रमाण है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है।
विशेषार्थ-- पहले ओघसे चार शरीरवालोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अंतर अनंत काल कह आये हैं सो वहाँ किसी एक योग और एक इन्द्रियकी प्रधानता न होने से वह अन्तर बन जाता है। किन्तु यहाँ काययोगमें वह घटित नहीं होता, क्योंकि, काययोगका अधिक काल तक सद्भाव एकेन्द्रियोंके होता है और एकेन्द्रियोंमें चार शरीरवालोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण पहले घटित करके बतला आये हैं इसलिए यहाँ भी वह उतना ही कहा है । तथा औदारिककाययोगके रहते हुए चार शरीरोंकी प्राप्ति यदि हो तो वह जघन्य और उत्कृष्ट रूपसे अन्तर्मुहुर्त काल तक नियम से होती है, इसलिए इसमें तीन शरीरवालोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहुर्त कहा है । यद्यपि नरक में और देवोंमें अधिकसे अधिक काल तक कोई जीव उत्पन्न न हो तो चौबीस मुहूर्त तक नहीं उत्पन्न होता पर सम्मिलित रूपसे विचार करने पर अधिकसे अधिक काल तक कोई नरकगति या देवगतिमें उत्पन्न न हो तो बारह महूर्त तक नहीं उत्पन्न होता, इसलिए वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें तीन शरीरवालोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त कहा है। कार्मणFor Private & Personal Use Only
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