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५, ६, १२८. )
योगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणा
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संसारिजीवाणमवोच्छेदे एगं हेउ परूविय विदियहेउपरूवणट्टमेदं गाहासुत्तमागदं । एक्कम्हि णिगोदसरीरे दव्वप्यमाणदो अनंता जीवा अत्थि त्तिणिद्दिट्ठा । जुत्तीए होता विकेत्तिया त्ति भणिदे अदीदकाले जे सिद्धा तेहिंतो अनंतगुणा एक्कम्हि foगोदसरीरे होंति । का सा जुत्ती, जाए एगणिगोदसरीरे अणंता जीवा उवलद्धा ? सव्वजीवरासी आणंतियं । जासि संखाणं आयविरहियाणं वये संते वोज्छेदो होदि ताओ संखाओ संखेज्जासंखेज्जसण्णिदाओ । जासि संखाणं आयविरहियाणं संखेज्जासंखेज्जेहि वइज्जमाणाणं पि वोच्छेदो ण होदि तासिमणंतमिदि सगणा । सव्वजीवरासी वाणतो तेण सो ण वोच्छिज्जदि, अण्णहा आणंतियविरोहादो । ण च अद्धपोग्गलपरिट्टेण वियहिचारी, तस्स केवलणाणस्स अनंतसण्णिदस्स विसयभावेण अनंतत्तसिद्धीदो। ण च मेए माणसण्णा असिद्धा, पत्थेण मिदजवेसु वि पत्थसण्णुवलंभादो । सव्वेण अदीदकालेण जे सिद्धा तेहिंतो एगणिगोदसरीरजीवाणमनंतगुणत्तं कुदो णव्वदे? जुत्तीदो चेव । तं जहा- असखेज्जलोगमेत्तणिगोदसरोरेसु जदि सव्वजोवरासी लब्भदि तो एगणिगोदसरोरहि*किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाएओट्टिदाए एगणिगोदसरीरजीवाणं पमाणं सव्वजीवरासिस्स असंखे० भागमेत्तं होदि । सिद्धा पुण
ससारी जीवोंकी व्युच्छित्ति कभी नहीं होती इस विषय में एक हेतुका कथन करके दूसरे हेतुका कथन करने के लिए यह गाथासूत्र आया है। एक निगोदशरीर में द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा अनन्त जीव हैं यह पहले दिखला आये है । युक्तिसे होते हुए भी वे कितने हैं ऐसा पूछने पर कहते हैं- अतीत कालमें जो सिद्ध हुए हैं उनसे एक निगोदशरीरमें अनन्तगुणे होते हैं ।
शंका- वह कौनसी युक्ति है जिससे एक निगोदशरीर में अनन्त जीव उपलब्ध होते है ? समाधान- सब जीव राशिका अनन्त होना यही युक्ति है ।
आयरहित जिन संख्याओंका व्यय होनेपर सत्त्वका विच्छेद होता है वे संख्याऐं संख्यात और असंख्यात संज्ञावाली होती हैं। आयसे रहित जिन संख्याओंका संख्यात और असंख्यातरूपसे व्यय होनेपर भी विच्छद नहीं होता है उनकी अनन्त संज्ञा है और सब जीवराशि अनन्त है, इसलिए वह विच्छेदको नहीं प्राप्त होती । अन्यथा उसके अनन्त होने में विरोध आता है । अर्धपुद्गलपरिवर्तनके साथ व्यभिचार आता है यह कहना ठीक नहीं है, क्योंकि, अनन्त संज्ञा - वाले केवलज्ञानका विषय होनेसे उसकी अनन्तरूपसे सिद्धि है । मेयमें मानकी संज्ञा असिद्ध है। यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, प्रस्थसे मापे गये यवोंमें प्रस्थ संज्ञाकी उपलब्धि होती है । शंका- सब अतीत कालके द्वारा जो सिद्ध हुए हैं उनसे एक निगोदशरीर के जीव अनन्तगुणे हैं यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- युक्तिसेही जाना जाता है । यथा-- असंख्यात लोकप्रमाण निगोदशरीरोंमें यदि सब जीवराशि उपलब्ध होती है तो एक निगोद शरीरमें कितनी प्राप्त होगो, इस प्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशि में प्रमाणराशिका भाग देनेपर एक निगोदशरीरके जीवों का प्रमाण अ०का०प्रत्यो: 'होतो वि' इति पाठ । तान्प्रतौ 'संत वोच्छेदो' इति पाठः । * तातो 'एकणि गोदजीव सरीरम्ह' इति पाठः ।
* अ०का०प्रत्या. 'एगहेउ' इति पाठः ।
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