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२१२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ६, ११६ गुण ? दिवड्ढोवट्टिदअसंखेज्जपदेसियवग्गणाणं अण्णोण्णभत्थरासी। अणंते ति कथं णव्वदे ? जुत्तीदो। तं जहा-एगगुणहाणीए जहण्णपरित्ताणते भागे हिदे असंखेज्जपदेसियवग्गणाणं गुणहाणिसलागाओ उप्पज्जति । एदाओ च जहण्णपरित्ताणतयस्स अद्धच्छेदणाहितो असंखेज्जगुणाओ। एदासिमसंखेज्जगुणत्तं कुदो णव्वदे ? गुरूवदेसादो । तेणेदाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णभत्थरासिस्स सिद्धमणंतत्तं । संखज्जपदेसियवग्गणासु णाणासेडिसध्वदव्या संखेज्जगुणा। को गुणगारो? एगरूवस्स असंखेज्जदिभागेणूणरूवूणुक्कस्ससंखेज्जयं । कुदो? परमाणुवग्गणादो एगादिएगुत्तरकमेण परिहोणएत्थतणगोवुच्छविसेसेहि एगपरमाणुवग्गणाए असंखेज्जभागुप्पत्तीदो। असंखेज्जपदेसियवग्गणासु णाणासेडिसव्वदव्वा असंखेज्जगुणा। को गुण ? एगरूवस्स असंखे०भागेणूणउक्कस्ससंखेज्जेण परिहीणदिवड्ढगुणहाणीए एगरूवस्स असंखे० भागेणूणरूवणुक्कस्ससंखेज्जेण ओवट्टिदाए जं लद्धं सो गुणगारो। एवं दव्वट्ठदप्पाबहुगं समत्तं । ____ संपहि णाणासेडिपदेसट्टदप्पाबहुअं उच्चदे। तं जहा-सव्वत्थोवा पत्तेयसरीरवर्गणामें नानाश्रेणि सब द्रव्य अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? डेढ़से भाजित असंख्यातप्रदेशी वर्गणाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है ।
शंका- वह अनन्तप्रमाण है यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- युक्तिसे जाना जाता है। यथा-एक गुणहानिका जघन्य परीतानन्त में भाग देने पर असंख्यातप्रदेशी वर्गणाओंकी गुणहानिशलाकायें उत्पन्न होती हैं। और ये जघन्य परीतानन्तके अर्धच्छेदोंसे असंख्यातगुणी हैं।
शंका- ये असंख्यातगुणी हैं यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान- गुरुके उपदेशसे ।
इसलिए इनका विरलनकर और दूना कर परस्पर गुणा करने से उत्पन्न हुई राशि अनन्तप्रमाण है यह सिद्ध होता है।
संख्यातप्रदेशी वर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब द्रव्य संख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? एक अंकके असंख्यातवें भागसे न्यून एक कम उत्कृष्ट संख्यात गुणकार है, क्योंकि, परमाणुवर्गणाकी अपेक्षा एकादि एकोत्तर क्रमसे हीन यहाँके गोपुच्छविशेषोंसे एक परमाणुवर्गणाके असंख्यातवें भागकी उत्पत्ति होती है। असंख्यातप्रदेशी वर्गणाओंमें नानाश्रेणि सब द्रव्य असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? एक अंकके असंख्यातवें भागसे न्यून उत्कृष्ट संख्यातको डेढगुणहानिमें से कम करने पर जो लब्ध आवे उसमें एक अंकके असंख्यातवें भागसे न्यून एक कम उत्कृष्ट संख्यातका भाग देने पर जो लब्ध आवे वह गुणकार है । इस प्रकार द्रव्यार्थता अल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
अब नानाश्रेणि प्रदेशार्थता अल्पबहुत्वका कथन करते हैं। यथा-प्रत्येकशरीरवर्गणाके प्रदेश
* अ०का प्रत्योः '-वग्गणाणाणासेडिसव्वदव्वा' इति पाठ; । Jain Education International
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