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२२४) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ६, ११८. जहा-पुव्वुत्ततेवीसवग्गणाहितो पंचसरीराणि पुधभूदाणि ति तेसि बाहिरववएसो । तं जहा-ण ताव पंचसरीराणि अचित्तवग्गणासु णिवदंति, सचित्ताणमचित्तभावविरोहादो। ण च सचित्तवग्गणासु णिवदंति, विस्सासुवचएहि विणा पंचण्हं सरीराणं परमाणूणं चेव गहणादो। तम्हा पंचण्हं सरीराणं बाहिरवग्गणा त्ति सिद्धा सण्णा । तत्थ इमा परूवणा कायव्वा भवदि
तत्थ इमाणि चत्तारि अणुयोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंतिसरीरिसरीरपरूवणा सरीरपरूवणा सरीरविस्सासुवचयपरूवणा विस्सासुवचयपरूवणा चेदि ॥ ११८ ॥
____सरीरी णाम जीवा। तेसि सरीराणं पत्तेयसाहारणभेयाणं परूवयत्तादो सरीरिसरीराणं च पत्तेयसाहारणलक्खणाणं परूवणत्तादो वा सरीरिसरीरपरूवणा णाम । पंचण्हं सरीराणं पदेसपमाणं तेसि पदेसणिसेयक्कमं पदेसथोवबहुत्तं च परूवेदि त्ति सरीरपरूवणा णाम । पंचण्हं सरीराणं विस्सासुवचयसंबंधकारणणिद्धल्हुक्खगुणाणमोरालिय-वेउविय-आहार-तेजा-कम्मइयपरमाणुविसयाणमविभागपडिच्छेदपरूवणा जत्थ कीरदि सा सरीरविस्सासुवचयपरूवणा णाम । तेसिं चेव परमाणूणं जीवादो मुक्काणं विस्सासुवचयस्स परूवणा जत्थ कीरदि सा विस्सासुवचयपरूवणदा णाम।
पाँच शरीर पृथग्भूत हैं, इसलिए इनकी बाह्य संज्ञा है। यथा-पाँच शरीर अचित्त वर्गणाओंमें सो सम्मिलित किये नहीं जा सकते, क्योंकि, सचित्तोंको अचित्त मानने में विरोध आता है। उनका सचित्त वर्गणाओंमें भी अन्तर्भाव नहीं होता, क्योंकि, विस्रसोपचयोंके बिना पाँच शरीरोंके परमाणुओंका ही सचित्त वर्गणाओंमें ग्रहण किया है। इसलिए पाँचों शरीरोंकी बाह्य वर्गणा यह संज्ञा सिद्ध होती है । उसमें यह प्ररूपणा करने योग्य है
वहां ये चार अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं-शरीरिशरीरप्ररूपणा, शरीरप्ररूपणा, शरीरविनसोपचयप्ररूपणा और विस्रसोपचयप्ररूपणा ॥ ११८ ॥ . शरीरी जीवोंको कहते हैं। उनके प्रत्येक और साधारण भेदवाले शरीरों का प्ररूपण करनेवाला होनेसे अथवा प्रत्येक और साधारण लक्षणवाले शरीरी और शरीरोंका प्ररूपणकरनेवाला होनेसे शरीरिशरीरप्ररूपणा संज्ञा है । पाँचों शरीरोंके प्रदेशोंके प्रमाणका, उनके प्रदेशोंके निषेक क्रमका और प्रदेशोंके अल्पबहुत्वका कथन करता है, इसलिए शरीरप्ररूपणा संज्ञा है। जिसमें औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तेजस और कार्मण परमाणुओं को विषय करनेवाले पाँच शरीरोंके विस्रसोपचयके सम्बन्धके कारण स्निग्ध और रूक्षगुणोंके अविभागप्रतिच्छेदोंकी प्ररूपणा की जाती है उसकी शरीरविस्रसोपचयप्ररूपणा संज्ञा है। तथा जिसमें जीवसे मुक्त हुए उन्हीं परमाणुओंके विस्रसोपचयकी प्ररूपणा की जाती है उसकी विस्रसोपचयप्ररूपणा संज्ञा है।
ॐ म० प्रतिपाठोऽयम् । प्रतिषु '-गुणियमोरालिय-' इति पाठः। Oम०प्रती 'तेसिं चेव परमाणूण' इत्यादि वाक्यं पुनरपि निबद्धमस्ति । म०प्रतिपाठोऽयम् । प्रतिष 'मक्कमारणं' इति पाठ: । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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