________________
५, ६, १२०.) बंधणाणुयोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणा
( २२५ एदेसि चदुण्हमणुयोगद्दाराणं कमेणेत्थ परूवणा कीरदे
सरीरिसरीरपरूवणदाए अस्थि जीवा पत्तेय-साधारणसरीरा ॥ ११९ ॥
एक्कस्सेव जीवस्स जं सरीरं तं पत्तयसरीरं। तं सरीरं जेसि जीवाणं अत्थि ते पत्तेयसरीरा णाम। बहूणं जीवाणं जमेगं सरीरं तं साहारणसरीरं णाम। तत्थ जे वसंति जीवा ते साहारणसरीरा। अथवा पत्तेयं पुधभूदं सरीरं जेसि ते पत्तयसरीरा। साहारणं सामण्णं सरीरं जेसि जीवाणं ते साहारणसरीरा। एवं सरीराणि सरीरिणो च दुविहा® चेव होंति, तदियस्स अणुवलंभादो ।
तत्थ जे ते साहारणसरीरा ते णियमा वणफदिकाइया । अवसेसा पत्तेयसरीरा ॥ १२० ॥
साहारणसरीरा जीवा वणप्फदिकाइया चेवे ति वयणेण साहारणसरीरं वणप्फदिकाइएसु णियमिदं। वणप्फदिकाइया पुण अणियदा ‘यत एवकारकरणं ततोऽन्यत्रावधारणमिति' वचनात् । तेण वणप्फदिकाइया पत्तयसरीरा वि अस्थि ति घेत्तव्वं । अवसेसा पुण जीवा पत्तेयसरीरा चेव ।।
अब इन चार अनुयोगद्वारोंका क्रमसे यहां पर कथन करते हैं
शरीरिशरीरप्ररूपणाकी अपेक्षा जीव प्रत्येक शरीरवाले और साधारण शरीरवाले हैं ॥११९॥
एक ही जीवका जो शरीर है उसकी प्रत्येकशरीर संज्ञा है । वह शरीर जिन जीवोंके है वे प्रत्येकशरीर जीव कहलाते हैं। बहुत जीवोंका जो एक शरीर है वह साधारणशरीर कहलाता है। उनमें जो जीव निवास करते हैं वे साधारणशरीर जीव कहलाते हैं। अथवा प्रत्येक अर्थात पृथग्भूत शरीर जिन जीवोंका है वे प्रत्येकशरीर जीव हैं । तथा साधारण अर्थात् सामान्य शरीर जिन जीवोंका है वे साधारणशरीर जीव कहलाते हैं। इसप्रकार शरीर और शरीरी दो प्रकारके ही होते हैं, क्योंकि, तीसरा प्रकार उपलब्ध नहीं होता।
उनमेंसे जो साधारणशरीर जीव हैं वे नियमसे वनस्पतिकायिक होते हैं। अवशेष जीव प्रत्येकशरीर हैं ॥ १२०॥
साधारणशरीर जीव वनस्पतिकायिक ही होते हैं इस वचनसे साधारणशरीर वनस्पतिकायिकोंमें नियमित किया गया है। परन्तु वनस्पतिकायिक अनियत हैं, क्योंकि, जहां एवकार किया जाता है उससे अन्यत्र अवधारण होता है ऐसा वचन है, इसलिए वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर भी हैं ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए । परन्तु अवशेष जीव प्रत्येकशरीर ही हैं ।
® अ० का०प्रत्यो: 'दुविहो' इति पाठः। म०प्रतिपाठोऽयम् । प्रतिष एवकारणं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org