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५, ६, १२४.) बंधणाणियोगद्दारे सरीरिसरीरपरूवणा
( २२९ वि दत्ताणं पोग्गलाणं फलमण्णे भंजंति?ण एस दोसो, एक्केण वि दत्तधणधण्णाईणं अविहत्तधणभाउआणं धूउपिउपुत्तणत्तुअंताणं च भोत्तुभावदसणादो । तत्थेव सरीरे गिवसंतजीवाणं जोगेणागदपरमाणुपोग्गला किमेदस्स अप्पिदजीवस्स होंति आहो ण होति त्ति भणिदे भणदि- बहूणं जमणुग्गहणं तं समासदो पिडभावेण एयस्स एदस्स वि अप्पिदणिगोदजीवस्स होदि, एगसरीरावासिदअणंतजीवजोगेणागदपरमाणुपोग्गलकलावजणिदसत्तीए एत्थ उवलंभादो। जदि एवं तो एदेसि बहूणं जीवाणं तमणुग्गहणं ण होदि, तप्फलस्स अण्णत्थ चेव एगम्हि जोवे उवलंभादो त्ति भणिदे भणदि'एयस्स' एष एकशब्दोऽन्तर्भावितवीप्सार्थः, तेनैकैकस्यापि जीवस्य तदनुग्रहणं भवति, तेभ्योऽन्यजीवेषु शक्त्युत्पत्तिकाल एव स्वस्मिन्नपि तदुत्पत्तेः ।
समगं वक्ताणं समगं तैसि सरीरणिप्पती। समगं च अणुग्गहणं समगं उस्सासणिस्सासो ।। १२४॥
एक्कम्हि सरीरे जे पढमं चेव उप्पण्णा* अणंता जीवा जे च पच्छा उप्पण्णा ते सव्वे समगं वक्ता णाम। कथं भिण्णकालुप्पण्णाणं जीवाणं समगत्तं जुज्जदे? ण,
शंका- एक जीवकेद्वारा दिये गये पुदगलोंका फल अन्य जीव कैसे भोगते हैं ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि एक के द्वारा भी दिये गये धन धान्यादिक को अविभक्त धनवाले भाई, लडकी, पिता, पुत्र और नाती तक के जीव भोगते हुए देखे जाते हैं।
उसी शरीरमें निवास करने वाले जीवोंके योगसे आये हुए परमाणुपुद्गल क्या एक विवक्षित जीवके होते है या नहीं होते हैं ऐसा पूछने पर कहते हैं- बहुत जीवोंका जो अनुग्रहण हैं वह मिल कर एक का अर्थात विवक्षित निगोद जीवका भी होता है, क्योंकि एक निवास करनेवाले अनन्त जीवोंके योगसे आये हुए परमाणु पुद्गल कलापसे उत्पन्न (हुई शक्ति इस जीव में पाई जाती है । यदि ऐसा है तो इन बहुत जोवोंका वह अनुग्रहण नहीं होता है, क्योंकि उसका फल अन्यत्र ही एक जीव में उपलब्ध होता है, ऐसा कहने पर कहते हैं'एयस्स' यह 'एक' शब्द अन्तर्गभित वीप्सारूप अर्थको लिए हुए है, इसलिये यह फलित हुआ कि एक एक जीव का भी वह अनुग्रहण है. क्योंकि, उन पुद्गलोंसे अन्य जीवों में शक्ति के उत्पन्न होने के काल में ही अपने में मी उसकी उत्पत्ति होती हैं ।
एक साथ उत्पन्न होनेवालोंके उनके शरीरकी निष्पत्ति एक साथ होती है, एक साथ अनुग्रहण होता है और एक साथ उच्छ्वास-निःश्वास होता है ॥१२४॥
एक शरीरमे जो पहले उत्पन्न हुए अनन्त जीव है और बादमें उत्पन्न हुए अनन्त जीव हैं वे सब एक साथ उत्पन्न हुए कहे जाते हैं ।
शंका- भिन्न काल में उत्पन्न हुए जीवोंका एक साथपना कैसे बन सकता है ?
रीरम
म.प्रतिपाठोऽयम् । प्रतीषु '-धणभाउवावाण' इतिपाठः । ॐ अका०प्रत्योः धउपिउ धत्तण्णत्तवणताणं इति पाठः। Oता०प्रतो 'तमणुग्गहं ण होदि' अ०का०प्रत्यो: 'तमणग्गहणं होदि' इति पाठः *-ताप्रतौ 'पढम उप्पण्णा' का०प्रतौ 'पढमं चे उप्पण्णा' इति पाठः। 6आप्रती
धक्कंताणाम' का०प्रतौ 'धक्कताण णाम' इति पाठः । Jain Education International
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