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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
समाणभावेण अच्छिदाओ वग्गणाओ सरिसधणियाओ णाम । ण च एक्कम्हि काले एक्किस्सेव वग्गणाए अणंताणं सरिसधणियाणं संभवो अत्थि; आवलियाए असंखेज्ज विभागमेत्ताओ चेव संभवंति त्ति परमगरूवदेसादो । सवजहणियाए महाखंधदम्ववग्गणाए सरिसधणियवग्गणा णियमा णत्थि; अदीदाणागदवट्टमाणकालेसु एक्कम्हि समए एगा चेव महाखंधदव्ववग्गणा होदि ति णियमादो। एवं णेयव्वं जाव उक्कस्समहाखंधदव्ववग्गणे ति । एवं वग्गणपरिमाणाणुगमो ति समत्तमणुयोगद्दारं।
एगसेडि भागाभागाणुगमेण परमाणुपोग्गलदम्यवग्गणा सम्बवग्गणाणं केवडियो भागो? अणंतिमभागो। तं जहा परमाणपोग्गलदव्यवग्गणा णाम एगो परमाणू । तेण सव्ववग्गणदव्वे भागे हिदे जं भागलद्धं* तं विरलेदूण सव्ववग्गणदव्वं समखंडं कादण दिणे एक्केक्कस्स परमाणुपमाणं चेददि । तत्थ एगरूवधरिदं परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा णाम । तदो सिद्धं सा सव्ववग्गणाणमतिमभागो त्ति । संखेज्जपदेसियवग्गणप्पहुडि जाव पत्तेयसरीरवग्गणे ति ताव एदासि एगसेडिवग्गणसलागाओसव्ववग्गणसलागाणमणंतिमभागो त्ति एवं चेव वत्तव्वं । तदो पत्तेयसरीरवग्गणाए उवरिमधुवसुण्णवग्गणाओ सव्ववग्गणाणं केवडियो भागो ? असंखेज्जदिभागो ।
समाधान- नहीं, क्योंकि, एक कालमें समान भावसे अवस्थित वर्गणायें ही सदृश धनवाली कहलाती हैं । परन्तु एक कालमें एक ही वर्गणाकी अनन्त सदश धनवाली वर्गणायें सम्भव नहीं, क्योंकि, आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण ही वर्गणायें होती हैं ऐसा परमगुरुका उपदेश है।
सबसे जघन्य महास्कन्धद्रव्यवर्गणाकी सदृश धनवाली वर्गणा नियमसे नहीं है, क्योंकि, अतीत, अनागत और वर्तमान काल में एक समय में एकही महास्कन्धद्रव्यवर्गणा होती है ऐसा नियम है। इस प्रकार उत्कृष्ट महास्कन्धद्रव्यवर्गणाके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए ।
- इस प्रकार वर्गणापरिमाणानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। एकश्रेणिभागाभागानगमकी अपेक्षा परमाणपुदगलद्रव्यवर्गणा सब वर्गणाओंके कितने भाग प्रमाण है? अनन वें भागप्रमाण हैं । यथा-परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा एक परमाणुरूप होती है । उसका सब वर्गणाओंके द्रव्य में भाग देने पर जो भाग लब्ध आवे उसका विरलन कर और सब वर्गणाओंके द्रव्य के समान खण्ड करके प्रत्येक विरलनके प्रति देने पर एक एकके प्रति एक एक परमाणु प्राप्त होता है । वहां एक विरलनके प्रति प्राप्त द्रव्य परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा है । इसलिए सिद्ध है कि वह सब वर्गणाओंके अनन्तवें भागप्रमाण है । संख्यातप्रदेशी वर्गणासे लेकर प्रत्येकशरीरवर्गणा तक इनकी एकश्रेणिवर्गणाशलाकायें सब वर्गणाशलाकाओंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं ऐसा यहां कहना चाहिए । अनन्तर प्रत्येकशरीरवर्गणासे उपरिम ध्रुवशून्यवर्गणायें सब वर्गणाओंके कितने भागप्रमाण हैं? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । यथा-ध्रुवशून्य वर्गणाकी
४ता० प्रती 'णियमाभावादो। एवं ' इति पाठ।।
*ता० प्रती ' भागं लद्धं ' इति पाठः ।
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