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५, ६, ११६. )
बंधणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा
( १६३
दुपदेसियवग्गणायामो विसेसहीणो। तस्स को पडिभागो? असंखंज्जा लोगा । एदेण कमेण भागहारस्स अद्भमेतं गंतूण दुगणहाणी होदि त्ति गुरूवदेसादो । एवं वग्गणाभागाभागाणुगमो त्ति समत्तमणयोगद्दारं ।
एगसेडिवग्गणअप्पाबहुगाणगमेण सव्वत्थोवा परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा । कुदो ? एगरूवत्तादो । संखेज्जपदेसियदव्यवग्गणा संखेज्जगुणा । को गुणगारो ? रूवणुक्क. स्ससंखेज्जयं । असंखेज्जपदेसियवग्गणाओ असंखेज्जगुणाओ। को गुणगारो ? सगरासिस्स संखेज्जदिभागभदअसंखेज्जा लोगा। को पडिभागो? संखेज्जपदेसियवग्गणाओ। आहारदव्ववग्गणाओ अणंतगुणाओ। को गुणगारो? सगरासिस्स असंखेज्ज' दिभागो। को पडिभागो? असंखेज्जपदेसियदव्ववग्गणाओ। अथवा गुणगारो अभवसिद्धिएहि अणंतगणो सिद्धाणमणंतभागमेत्तो । तेजादववग्गणाओ अगंतगणाओ। को गुणगारो ? सगरासिस्स अणंतिमभागो। तस्स को पडिभागो? आहारदव्ववग्गणाओ । भासादब्यवग्गणाओ अणंतगणाओ । मणदव्यवग्गणाओ अणंतगणाओ। कम्पइयदव्ववग्गणाओ अणंतगुणाओ । सव्वत्थ अप्पप्पणो हेट्ठिमएगसेडिसव्वघग्गणाहि* उवरिमएगसेडिसव्ववग्गणासु अवहिरिदासु गणगाररासी आगच्छति । असंखेज्जपदेसियदव्ववग्गणाए उवरि आहारवग्गणाए हेट्ठा अणंतपदेसियदव्ववग्गणाओ
क्योंकि, एकप्रदेशी वर्गणाके आयामसे द्विप्रदेशी वर्गणाका आयाम विशेष हीन है । उसका प्रतिभाग क्या है ? असंख्यात लोक उसका प्रतिभाग है । इस क्रमसे भागहारके अर्धभाग तक जाकर द्विगुणी हानि होती है ऐसा गुरुका उपदेश है।
इस प्रकार वर्गणाभागाभागानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
एकश्रेणिवर्गणाअल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा सबसे स्तोक है, क्योंकि, उसका प्रमाण एक है। उससे संख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणा संख्यातगुणी है। गुणकार क्या है एक कम उत्कृष्ट संख्यात गणकार है। उससे असंख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणायें असंख्यातगुणी हैं। गुणकार क्या है? अपनी राशि के संख्यातवें भागप्रमाण अर्थात् असंख्यात लोक गुणकार है। प्रतिभाग क्या है? संख्यातप्रदेशी वर्गणायें प्रतिभाग है। उससे आहारद्रव्यवर्गणायें अनन्तगुणी हैं । गुणकार क्या है? अपनी राशि का असंख्यातवां भाग गुणकार है । प्रतिभाग क्या है? असंख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणायें प्रतिभाग है । अथवा गुणकार अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण है । उससे तैजसशरीरद्रव्यवर्गणायें अनन्तगुणी हैं । गुणकार क्या है? अपनी राशिका अनन्तवां भाग गुणकार है । उसका प्रतिभाग क्या है? आहारद्रव्यवर्गणायें प्रतिभाग है । उससे भाषाद्रव्यवर्गणायें अनन्तगुणी हैं । उससे मनोद्रव्यवर्गणायें अनन्तगुणी हैं। उससे कार्मणद्रव्यवर्गणायें अनन्तगुणी हैं । सर्वत्र अपनी अपनी पिछली एकश्रेणिद्रव्यर्गणाओंका आगेकी एकश्रेणि सब वर्गणाओंमें भाग देने पर गुणकारराशि उत्पन्न होती है । असंख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणाके आगे और आहारशरीरद्रव्यवर्गणाके पूर्व अनन्तप्रदेशी
*म० प्रतिपाठोऽयम् । प्रतिष -सेडिदव्ववग्गणाहि' इति पाठः ।
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