________________
२०४)
छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
(५, ६, ११६. गंतूण जा अणंतरवग्गणा तत्थ बिदियपक्खेवो ज्झीयदि । एवं जाणिदूण यव्वं जाव पढमदुगुणहीणवग्गणे त्ति । पुणो पढमदुगुणहीणवग्गणपमाणेण अणंताओ वग्गणाओ उरि गंतूण तदो जा उवरिमवग्गणा तत्थ असंखेज्जाओ वग्गणाओ ज्झीयंति । उवरि जाणिदण यव्वं । णवरि आवलियाए असंखे०भागममेत्तदुगुणहीणाओछउवरि गंतूण सव्वजहण्णवग्गणपमाणवग्गणा होदि । पुणो सवजहण्णवग्गणपमाणेण अणंताओ वग्गणाओ उरि गंतूण तदो जा अणंतरवग्गणा तत्थ एगा वग्गणा ज्झीयदि । एवं जाणिदूण यव्वं जाव दुगुणहीणजहण्णवग्गणे त्ति । एत्तो उवरि जधा अणुभागट्ठाणेसु एगजीवपरिहाणी कदा तधा एत्थ वि काऊण यव्वं जावुक्कस्सपत्तेयसरीरवगणे त्ति।
परंपरोवणिधाए अभवसिद्धियपाओग्गसव्वजहण्णवग्गणाहितो अणंताओ वग्गणाओ गंतूण दुगुणवड्ढी होदि । एवं दुगुणवड्डिदा दुगुणवड्डिदा होदूण गच्छंति जाव जवमज्झं ति । तेण परमणंताओ वग्गणाओ गंतूण दुगुणहाणी होदि । एवं दुगुणही. णाओ दुगुणहीणाओ होदूण गच्छंति जाव उक्कस्सपत्तयसरीरवग्गणे ति । एत्थ परूवणादितिण्णिअणुयोगद्दाराणि होति । परूवणदाए अत्थि एगवग्गण-गुणहाणिट्ठाणंतरं णाणागुणहाणिसलागाओ च । पमाणं-एगपदेसगुणहाणिट्ठाणंतरं सव्वजोवेहि अणंतगुणं । णाणागुणहाणिसलागाओ जवमझादो हेट्ठा उरि च आवलियाए असंखे०भागमेत्ताओ होति । अप्पाबहुअं-सव्वत्थोवाओ णाणागुणहाणि
वर्गणा है उसमेंसे द्वितीय प्रक्षेप गलित होता है । इस प्रकार प्रथम द्विगुणहीन वर्गणाके प्राप्त होने तक जान कर ले जाना चाहिए। पुनः प्रथम द्विगुणहीन वर्गणाके प्रमाणसे अनंत वर्गणायें ऊपर जा कर अनन्तर जो उपरिम वर्गणा है वहां असंख्यात वर्गणायें गलित होती हैं। ऊपर जान कर ले जाना चाहिए। इतनी विशेषता है कि आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण द्विगुणहीन वर्गणायें ऊपर जा कर सबसे जघन्य वर्गणाके प्रमाणवाली वर्गणा होती है । पुनः सबसे जघन्य वर्गणाके प्रमाणसे अनन्त वर्गणायें ऊपर जाकर उसके बाद जो अनन्तर वर्गणा है वहाँ एक वर्गणा गलित होती है । इस प्रकार द्विगुणहीन जघन्य वर्गणाके प्राप्त होने तक जानकर ले जाना चाहिए। इससे आगे जिस प्रकार अनुभागस्थानोंमें एक जीवपरिहानि की है उसी प्रकार उत्कृष्ट प्रत्येकशरीरवर्गणाके प्राप्त होने तक यहां भी करके ले जाना चाहिए ।
परम्परोपनिधाकी अपेक्षा अभव्योंके योग्य सबसे जघन्य वर्गणासे लेकर अनन्त वर्गणायें जाकर द्विगुणवृद्धि होती है। इस प्रकार यवमध्यके प्राप्त होनेतक दूनी दूनी वृद्धि होती जाती है। उसके बाद अनन्त वर्गणायें जाकर द्विगुणहानि होती है। इस प्रकार उत्कृष्ट प्रत्येक शरीरवर्गणाके प्राप्त होने तक दूनी हानि दूनी हानि होकर जाती है। यहां पर प्ररूपणा आदि तीन अनुयोगद्वार होते हैं। प्ररूपणाको अपेक्षा एकवर्गणागुणहानिस्थानान्तर है और नानागुणहानिशलाकायें हैं ।
ण-एक प्रदेशगणहानिस्थानान्तर सब जीवोंसे अनन्तगणा है। नानागणाहानिशलाकायें यवमध्यके नीचे और ऊपर आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अल्पबहुत्व-नानागुणहानि
लिप्रतिषु '-दुगुणहाणीओ' इति पाठः । ॐ अ का०प्रत्यो: '-पमाणं वग्गणा' इति पाठः । Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org