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५, ६, ११६. ) बंधणाणुयोगद्दारे उवणिधापरूवणा
( १८१ संखेज्जगुणहीणाओ होदूण गच्छंति जाव धुवखंधम्मि अण्णाओ अणंताओ वग्गणाओ गदाओ ति । पुणो तिस्से संखेज्जगुणहीणचरिमवग्गणाए जा उवरिमअणंतरवग्गणा सा असंखेज्जगणहीणा होदि । तस्स को पडिभागो? असंखेज्जा लोगा। तं जहा- असंखेज्जलोगे विरलेदूण पुणो संखेज्जगुणहीणवग्गणाणं चरिमवग्गणं समखंडं कादूण दिण्णे तत्थ एगरूवधरिदं तदणंतर उवरिमवग्गणदव्वं होदि । एवं जिरंतरकमेण असंखेज्जगुणहोणाओ होदूण गच्छंति जाव धुवखंधम्मि अणंताओ वग्गणाणो गदाओ त्ति । तिस्से उवरि जाओ अणंतरवग्गणाओ ताओ अणंतगुणहीणाओ होति । तं जहा- अभवसिद्धिएहि अणंतगुणसिद्धाणमणंतिमभागरासि विरलेदूण पुणो असंखेज्जगुणहीणवग्गणाणं चरिमवग्गणं समखंड कादूण दिण्णे तदित्थएगरूवधरिदं तदणंतरवग्गणपमाणं होदि । एवमणंतगुणहीणाओ अणंतगणहीणाओ होदण गच्छंति जाव धुवखंधम्मि अणंताओ वग्गणाओ गदाओ त्ति । पुणो तस्सुवरिमणंतगुणहीणाओ चेव होंति । णवरि विसेसो अस्थि भागहारगओ। तं जहा- अभवसिद्धिएहि अणंतगुण-सिद्धाणमणंतिमभागभागहारं* विरलेदूण पुणो पढमअणंतगणहीणवग्गणाणं चरिमवग्गणं समखंडं काढूण दिण्ण तत्थ एगरूवधरिदं तदणंतरउरिमवग्गणपमाणं होदि । एवं पुणो वि अणंतगुणहीणाओ अणंतगणहीणाओ होदूण गच्छंति जाव धुवखंधम्मि अणंताओ वग्गणाओ वर्गणाओंके व्यतीत होने तक सब वर्गणायें निरन्तर क्रमसे संख्यातगुणी हीन संख्यातगुणी हीन होकर जाती हैं। पुनः उस संख्यातगुणहीन अन्तिम वर्गणासे जो आगेकी अनन्तर वर्गणा है वह असंख्यातगुणी हीन होती है। उसका प्रतिभाग क्या है ? असंख्यात लोक प्रतिभाग है। यथा- असंख्यात लोकोंका विरलन करके पुनः संख्यातगणहीन वर्गणाओं में से अन्तिम वर्गणाकी समान खण्ड करके देयरूपसे देनेपर यहाँ एक विरलन अंकके प्रति प्राप्त द्रव्य तदनन्तर उपरिम वर्गणाका द्रव्य होता है। इस प्रकार ध्रुवस्कन्ध में अन्य अनन्त वर्गणाओंके व्यतीत होने तक सब वर्गणायें निरन्तर क्रमसे असंख्यातगुणी हीन होकर जाती है । पुनः उसके ऊपर जो अनन्तर वर्गणायें हैं वे अनन्तगुणहीन होती हैं। यथा- अभव्योंसे अनन्तगुणी और सिद्धोंसे अनन्तवें भागप्रमाण राशिका विरलन करके पुन: असंख्यातगुणी हीन वर्गणाओंमेंसे अन्तिम वर्गणाके समान खण्ड करके देयरूपसे देनेपर वहां एक विरलन अंकके प्रति प्राप्त द्रव्य तदनन्तर वर्गणाका प्रमाण होता है। इस प्रकार ध्रुवस्कन्ध में अन्य अनन्त वर्गणाओंके व्यतीत होने तक सब वर्गणायें अनन्तगुणी हीन अनन्तगुणीहीन होकर जाती हैं। पुनः इसके आगे सब वर्गणाय अनन्तगुणी हीन ही होती हैं । मात्र भागहारगत कुछ विशेषता है । यथा- अभव्योंसे अनंतगुण और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण भागहारका विरलन करके पुन: प्रथम अनंतगुणहीन वर्गणाओंमें से अन्तिम वर्गणाको समान खण्ड करके देयरूपसे देनेपर वहां एक विरलन अंकके प्रति प्राप्त द्रव्य तदनन्तर आगेकी वर्गणाका प्रमाण होता है । इस प्रकार ध्रुवस्कन्धमें अन्य अनन्त वर्गणाओंके व्यतीत होने तक ये सब वर्गणायें फिर भी अनन्तगुणी हीन अनन्तगुणी हीन होकर जाती हैं।
ता० अ० प्रत्योः भागहारं गओ' इति पाठः 1 * ता० प्रती '-मणंतिमभागहारं ' अ० प्रती -मणंतिमभागे भागहारं ' इति पाठः ।
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