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५, ६, ११६. ) बंधणाणुयोगद्दारे उवणिधापरूवणा
( १८३ संखेज्जभागहीणवग्गणाणमेगपदेसगुणहाणिअद्धाणं संखेज्जाओ वग्गणाओ। णाणापदेसगुणहाणिसलागाओ उभयत्थ पुण अणंताओ। अप्पाबहुगं- सव्वत्थोवमेगपदेसगुणहाणिढाणंतरं । णाणापदेसगणहाणिसलगाओ अणंतगुणाओ। ____संपहि पदेसटुवाए अणंतरोवगिधा वच्चदे । तं जहा--परमाणुपोग्गलवग्गणपदेसादो दुपदेसियवग्गणपदेसा विसेसाहिया । किंचणदुगुणा ति भणिदं होदि । तिपदेसियवग्गणपदेसा विसेसाहिया । किंचणदुभागेण अहिया त्ति भणिदं होदि । चदुप्पदेसियवग्गणाए पदेसा विसेसाहिया । केत्तियमेतेण ? किंचणतिभागेण । पंचमपदेसियवग्गणाए पदेसा विसेसाहिया । के० मेत्तेण ? किचूणचदुब्भागण एवं विसेसाहिया विसेसाहिया होदूण गच्छंति जाव असंखेज्जा लोगा ति विसेसो पुण संखेज्जपदेसियासु दग्गणासु संखेज्जविभागो । असंखेज्जपदेसियासु वग्गणासु अणंतरहेट्टिमवग्गणपदेसाणमसंखेज्जविभागो ।असंखेज्जलोगमेत्तद्धाणं गंतूण पदेसजवमज्झं होदि । पुणो जवमज्झस्सुवरि* विसेसहीणाओ होदूण वग्गणाओ गच्छंति जाव धुवखंधम्मि अणंताओ वग्गणाओ गदाओ ति। विसेसो पुण असंखेज्जविभागो । तस्स को पडिभागो ? असंखेज्जा लोगा। तस्सुवरि संखेज्जभागहीणा होहण गच्छंति जाव धुवांधम्मि अणंताओ वग्गणाओ गदाओ त्ति । उवरि जाणिदूण णेदव्य जाव धुवांधवग्गणाओ समत्ताओ ति।
एकप्रदेशगुणहानि अध्वान संख्यात वर्गणाप्रमाण है। परन्तु दोनों जगह नानाप्रदेशगुणहानिशलाकायें अनन्त हैं। अल्पबहुत्व- एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर सबसे स्तोक है। इससे नानाप्रदेशगुणहानिशलाकायें अनन्तगुणी हैं।
अब प्रदेशार्थताकी अपेक्षा अनन्तरोपनिधाका कथन करते हैं । यथा- परमाणु पुद्गल वर्गणाप्रदेशसे द्विप्रदेशी वर्गणाप्रदेश विशेष अधिक हैं। कुछ कम दूने हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इनसे त्रिप्रदेशी वर्गणाप्रदेश विशेष अधिक है। कुछ कम द्वितीय भागप्रमाण अधिक हैं। इनसे चतुःप्रदेशी वर्गणाके प्रदेश विशेष अधिक हैं । कितने अधिक हैं ? कुछ कम विभाग अधिक हैं। इससे पञ्चप्रदेशी वर्गणाके प्रदेश विशेष अधिक है। कितने अधिक हैं ? कुछ कम चतुर्थभाग अधिक है। इस प्रकार असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाने तक विशेष अधिक विशेष अधिक होकर जाते हैं। किन्तु विशेष का प्रमाण संख्यातप्रदेशी वर्गणाओंमें संख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातप्रदेशी वर्गणाओंमें अनन्तर अधस्तन वर्गणाप्रदेशोंके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यात लोकप्रमाण स्थान जाकर प्रदेशयवमध्य होता है । पुन: प्रदेशयवमध्यके ऊपर ध्रुवस्कन्धमें अनन्त वर्गणाओंके व्यतीत होने तक वर्गणाय विशेष हीन होकर जाती हैं। मात्र विशेष असंख्यातवें भागप्रमाण है। उसका प्रतिभाग क्या है ? असंख्यात लोकप्रमाण प्रतिभाग है । उसके ऊपर ध्रवस्कन्धमें अनन्त वर्गणाओंके व्यतीत होने तक सब वर्गणायें संख्यातभागहीन होकर जाती हैं। आगे ध्रुवस्कन्ध वर्गणाओंके समाप्त होने तक जानकर ले जाना चाहिए।
* ता० प्रती गंतूण पदेसजवमज्झस्सुवरि ' इति पाठः ।
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