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१९६ )
०८ ८८ ०८ ८८
४
२
४ ३
जेण कबे एलियं होदि | ८|३ | उबरिमगुणहाणीसु एत्थतणसंकलणरासी हवा
।
३५४
दिरूवृत्तरगुणगारेण गुणिज्जमाणा गच्छदि । बिदिया पुण अवद्विदा । सव्वत्थ एदेण
अत्थपदेण पंचमगुणहाणिदव्वे अवणिदे एत्तियं होदि | ८ | १४० ।। छट्ठगुणहाणि
दवमेत्तियं होदि
८
छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
( ५, ६, ११६
। एदे पक्खेवे पुव्वरासिम्मि पाडिय सेसे जवमज्झपमा --
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अट्ठमगुणहाणिवश्वमेत्लियं होदि ||
। सलमगुणहाणिदव्वमेत्लियं होदि|८|
८ ६७
८६४
८
| एवं गुणहाणि पडि गुणहाणि पडि
अंसा णउत्तरकमेण छंदा विदुगुणक मेण गुणहाणीए गुणगारा होटूण गच्छति जाव ध्रुवक्खंधम्मि असंखेज्जभागहाणीए चरिमगुणहाणि त्ति । तदो एदासि मेलावणविहाणं भण्णमाणे यवमध्यादूर्ध्वं पदिति विकल्प्य दो सुत्तगाहाओ । तं जहा
इच्छं विरलिय (दु ) गुणिय अण्णोष्णगुणं पुणो दुपडिरासि । काऊण एक्करासि उत्तरजुदआदिणा गुणिय ।। १५ ।।
०८।८८ ०८ | ८८ ૨ ४
| 6665
हानिगच्छ संकलनासंकलन द्विगुणमात्र गोपुच्छविशेष फिट जाते हैं । उनका प्रमाण यह है। इन प्रक्षेपोंको पूर्व राशि में से अलग करके शेषको यवमध्यके प्रमाणसे करनेपर इतना होता है- ||३१ उपरिम गुणहानियों में यहाँ की संकलनराशि एकादि एकोत्तर गुणकार से गुणित होकर जाती है । परन्तु दूसरी राशि अवस्थित रहती है । सर्वत्र इस अर्थपदके अनुसार पञ्चम गुणहानिके द्रव्यके निकाल देने पर इतना होता है - ||१०८ । छटवीं गुण
हानिका द्रव्य इतना है
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सातवीं गुणहानिका द्रव्य इतना है
। आठवी
गुणहानिका द्रव्य इतना है-||६४ | इस प्रकार ध्रुवस्कन्धमें असंख्यातभागहानिकी अन्तिम गुणानि प्राप्त होने तक गुणहानि गुणहानिके प्रति अंश नवोत्तरक्रमसे और छेदादिद्विगुणक्रमसे गुणहानिके गुणकार होकर जाते हैं । अनन्तर इनके मिलाने की विधिका कथन करनेपर यवमध्यके ऊपर प्राप्त होता है ऐसा विकल्प करके दो सूत्रगाथायें देते हैं । यथा
इच्छित गच्छका विश्लन कर और उस विरलनराशिके प्रत्येक एकको दूना कर परस्पर गुणा करने से जो उत्पन्न हो उसकी दो प्रतिराशियाँ स्थापित कर उनमेंसे एक राशिको उत्तरसहित
अ० प्रतो
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। १३३ । इति पाठः ।
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