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१५८ )
छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, ११६.
जीवा होंति । एवमेसा जवमज्झपरूवणा भवसिद्धियट्टाणेसु सेचीय आइरियउवदेसेण परुविदा |
तदो जा अनंतरा अभवसिद्धियपाओग्गवग्गणा तिस्से वग्गणाए सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि तो एक्को वा दो वा जा उक्कस्सेण आवलियाए असं - खेज्जदिभागमेत्ताओ सरिसधणियवग्गणाओ होंति । एवमेदेण पमाणेण अनंतासु वग्गणासु गदासु तदो परदो जा अणंतरवग्गणा तिस्से वग्गणाए सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि तो एक्को वा दो वा जा उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ सरिसधणियवग्गणाओ होंति । वरि पुव्ववग्गणाहितो विसेसाहियाओ एगवग्गणाए । पुणो एटेण विहाणेण अनंताओ वग्गणाओ गच्छति । पुणो जा अणंतरउवरिमवग्गणा सा हेहिमवग्गणादो विसेसाहिया एगवग्गणाए । एवं भवसिद्धियवग्गणाणं उत्तविहाणेण णेयव्वं जाव जवमज्झे त्ति । पुणो जवमज्झवग्गणाए वग्गणाओ सिया अत्थि सिया गत्थि । जदि अत्थि तो एक्को वा दो वा तिष्णि वा जाव उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्ज विभागमेत्ताओ होंति । पुणो एदाओ वि अनंताओ वग्गणाओ गदाओ । तदो परदो अणंतरवग्गणा तिस्से वग्गणाए सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि तो एक्को वा दो वा तिणि वा जा उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तवग्गणाओ होण पुत्रवग्गणाहितो विसेसहीणाओ त्ति । पुणो एदाओ वि अनंताओ वग्गणाओ गदाओ । तदो परदो जा अनंतर वग्गणा धनवाले दो जीव है । इस प्रकार भव्यप्रायोग्य स्थानों में यह यवमध्यप्ररूपणा सेचीय आचाके उपदेशसे कही है ।
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इसके बाद जो अनन्तर अभव्यप्रायोग्य वर्गणा है उस वर्गणाकी वर्गणायें कदाचित् हैं और कदाचित नहीं हैं । यदि है तो एक है, दो हैं इस प्रकार उत्कृष्ट रूपसे सदृश धनवाली वर्गणायें आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । इस प्रकार इस प्रमाणसे अनन्त वर्गणाओंके जाने पर उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा है उस वर्गणाकी वर्गणायें कदाचित् है और कदाचित् नहीं हैं । यदि हैं तो एक है, दो हैं, इस प्रकार उत्कृष्ट रूपसे सदृश धनवाली आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण वर्गणायें है । इतनी विशेषता है कि एक वर्गणा में पूर्ववर्गणासे विशेष अधिक है । पुन: इस विधि से अनन्त वगणायें जाती है । पुनः जो अनन्तर उपरिम वर्गणा है वह अधस्तन वर्गणासे एक वर्गणा में विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार यवमध्य के प्राप्त होने तक भव्य प्रायोग्य वर्गणाओंको उक्त विधिसे ले जाना चाहिए । पुनः यवमध्यवर्गणाकी वर्गंणायें कदाचित है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो एक है, दो हैं, तीन हैं, इस प्रकार उत्कृष्टरूप से
आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं 1 पुनः ये भी अनन्त वर्गणायें गत हो
जाती हैं । उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा है उस वर्गणाकी वर्गणायें कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं है । यदि हैं तो एक है, दो हैं तीन हैं इसप्रकार उत्कृष्टरूपसे आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होकर भी पूर्वकी वर्गणासे विशेष होन हैं । पुनः ये भी अनन्त वर्गणायें गत हो जाती हैं । उससे आगे जो अनन्तर वर्गणा हैं उसकी आवलिके असंख्यातवें
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