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५, ६, ११६ ) बंधणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा (१५३ सचित्तवग्गणाणं पुण भावो मिस्सो चेव; तत्थ सुद्धगभावाणुवलंभावो । णाणासेढिवग्गणभावो एवं चेव भाणिदवो । ओदइयभावेण पोग्गलाणमवट्टाणं पुण उक्कस्सेण असंखज्जलोगमेत्तकालपमाणं होदि । एवं भावाणुगमो ति समत्तमणुयोगद्दारं ।
_एगसेडिवग्गण उवणयणाणुगमेण परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा एया चेव । संखेज्जपदेसियदव्ववग्गणाओ रूवणुक्कस्ससंखेज्जमेत्ताओ। असंखेज्जपदेसियदव्ववग्गणाओ असंखेज्जाओ। जहणणपरित्ताणंतादो जहण्णपरित्तासंखेज्जे सोहिदे सुद्धसेसमेत्ताओ ति भणिदं होदि। आहारवग्गणाए हेटा अणंतपदेसियअगहणवग्गणा अणंताओ। जहण्णआहारवग्गणादो जहण्णपरित्ताणते सोहिदे सुद्धसेसम्मि जत्तियाणि रूवाणि तत्तियमेत्ताओ त्ति घेतव्वं । अभवसिद्धिएहि अणंतगुणाओ सिद्धाणमणंतभागमेताओ त्ति भणिदं होदि । एवं यन्वं जाव कम्मइयवग्गणे ति । धुवखंधदव्ववग्गणाओ अणंताओ । जहण्णधुवक्खंधवग्गणाए जहाणसांतरणिरंतरवग्गणाए सोहिदाए जं सेसं तत्तियमेत्ताओ लि घेत्तव्वं । एवमप्पिदजहण्णवग्गणमवरिमवग्गणजहण्णवग्गणाए सोहिय सुद्धसेसेण वग्गणउवणयो परवेदव्वो जाव महाखंधदव्ववग्गणे ति । एवं जाणासेडिवग्गणाउवणयणाणुगमो वत्तव्वो; विसेसाभावादो । एवं वग्गणुवणयणस्स अत्थं के वि आइरिया भणंति । एसो अत्थो ण घडदे । कुदो ? वग्गणपारिणामिक भाव और औदयिक-पारिणामिक भाव इस प्रकार तीन प्रकारका भाव होता है । परन्तु सचित्तवर्गणाओंका भाव मिश्र ही होता है, क्योंकि, उनमें शुद्ध एक भाव नहीं उपलब्ध होता । नानाश्रेणिवर्गणाओंका भाव इसी प्रकार कहना चाहिए। परन्तु औदयिकभावके साथ पुद्गलोंका अवस्थान उत्कृष्ट से असंख्यात लोककालप्रमाण होता है।
- इस प्रकार भावानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। एकश्रेणिवर्गणाउपनयनानुगमकी अपेक्षा परमाणुपुद्गलद्र व्यवर्गणा एक ही है । संख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणायें एक कम उत्कृष्ट संख्यातप्रमाण है । असंख्यातप्रदेशी द्रव्यवर्गणार्य असंख्यात हैं । जघन्य परीतानन्तमेंसे जघन्य परीतासंख्यातके कम करने पर जितना शेष रहे उतनी हैं यह उक्त कथनका तात्पर्य है । आहारवर्गणासे पूर्व अनन्तप्रदेशी अग्रहणवर्गणायें अनन्त हैं । जघन्य आहारवर्गणामसे जघन्य परीतानन्तके कम कर देनेपर शेषमें जो संख्या प्राप्त हो उतनी हैं ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए। वे अभव्योंसे अनन्तगुणी और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण हैं यह उक्त कथन का तात्पर्य है । इस प्रकार कार्मणवर्गणा तक जानना चाहिए। ध्रवस्कन्धद्रव्यवर्गणायें अनन्त हैं। जघन्य सान्तरनिरन्तरवर्गणामेंसे जघन्य ध्रवस्कन्धवर्गणाके घटा देने पर जो शेष रहे उतनी है ऐसा यहां ग्रहण करना चाहिए । इस प्रकार विवक्षित जघन्य वर्गणाको आगेकी वर्गणाकी जघन्य वर्गणामेंसे घटा देने पर जो शेष रहे उतना वर्गणाका उपनय कहना चाहिए और यह कहना महास्कन्धवर्गणातक करना चाहिए । इसी प्रकार नाना श्रेणिवर्गणा उपयनानुगमका कथन करना चाहिए, क्योंकि, उससे इसमें कोई विशेषता नहीं हैं। इस प्रकार कितने ही आचार्य वर्गणा उपनयनका अर्थ कहते हैं, परन्तु यह अर्थ घटित नहीं होता, 8 म0 प्रतो ' वग्गणाए चेव' का० प्रती ' वग्गणाए एया चेव ' इति पाठः ।
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