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५, ६, ११६. ) बंधणाणुयोगद्दारे सेसाणुयोगद्दारपरूवणा (१४५ ण च असंखेज्जलोगमेत्तपत्तेयसरीरवग्गणाहि सव्वजोवेहि अणंतगुणमेत्तद्वाणाणि वट्टमाणकाले आवरिज्जंति; विरोहादो । अदीदकाले वि सांतराणि चेव; अदीदकालादो असंखेज्जगुणेहि अदीदकालप्पण्णपत्तेयसरीरदाणेहि जीवेहि सव्वट्ठाणावरणविरोहादो। पस्समाणाए वि ण गिरंतराओ; सव्वदा अदीदकालस्स सम्वजीवरासीदो अणंतगुणहीणत्तुवलंभादो । सेचीयादो पुण सव्ववग्गणाओ गिरंतराओ; एसा चेव संभवदि त्ति णियमाभावादो।
बादरगिगोदवग्गणाओ भवसिद्धियपाओग्गाओ जाओ खीणकसायकालम्हि लब्भमाणियाओ ताओ वट्टमाणकाले सांतराओ; सव्वजीवेहि अणंतगणमेत्तबादरणिगोदवग्गणाणं खीणकसायपाओग्गाणं संखेज्जेहि जोवेहि आवरणविरोहादो । अदीदकाले फुसणेण सांतराओ; अंतोमहत्तगुणिदसिद्धरासिमेतट्टाणाणं चेव तीदे काले फोसणवलभादो। एवं पस्समाणफोसणं पि वत्तव्वं; विसेसाभावादो। सेचीयादो पुण गिरंतराओ। अभवसिद्धियपाओग्गाओ* जाओ मलयथहल्लयादिविसयाओ बादरणिगोदवग्गणाओ ताओ वट्टमाणकाले सांतराओ। कुदो ? असंखेज्जलोगमेत्तबादरणिगोदवगणाहि सन्धजीवेहि अणंतगणमेत्तसम्बट्टाणावरणसंभवाभावादो । अदीदे
__यह कहना कि असख्यात लोकप्रमाण प्रत्येकशरीरवर्गणायें सब जीवोंसे अनन्तगुण स्थानोंको वर्तमान काल में पूरा करती हैं, ठोक नहीं है, क्योंकि, ऐसा होने में विरोध आता है । वे अतीत काल में भी सान्तर ही हैं, क्योंकि, अतीत कालसे असंख्यातगुणे अतीत काल में उत्पन्न हुए प्रत्येकशरीरस्थानरूप जीवोंके द्वारा सब स्थानोंके पूरा होने में विरोध है । दृश्यमान कालमें भी वे निरन्तर नहीं हैं, क्योंकि, सर्वदा अतीत काल सब जीवराशिसे अनन्तगुणा हीन पाया जाता है । परन्तु से चीयकी अपेक्षा सब वर्गणायें निरन्तर है, क्योंकि, इस अपेक्षासे यही सम्भव है ऐसा कोई नियम नहीं है । अर्थात् सेचीयकी अपेक्षा कोई भी वर्गणा सदा सम्भव हो सकती है। इसलिए सब वर्गणाओंको निरन्तर कहा है।
भव्योंके योग्य जो बादरनिगोदवर्गणायें क्षीणकषायके काल में लभ्यमान हैं वे वर्तमान काल में सान्तर है, क्योंकि, सब जीवोंसे अनन्तगुणी क्षीणकषायके योग्य बादरनिगोदवर्गणाओंका संख्यात जीवोंके द्वारा पूरा करने में विरोध है । अतीतकालमें स्पर्शनकी अपेक्षा सान्तर है, क्योंकि, अन्तर्मुहुर्तगुणित सिद्धराशिप्रमाण स्थानोंका ही अतीत कालये स्पर्शन उपलब्ध होता है । इसी प्रकार पश्यमान स्पर्शन भी कहना चाहिए, क्योंकि, उसमें कोई विशेषता नहीं है। सेचीयकी अपेक्षा तो निरन्तर हैं । मली, थवर और आर्द्रक आदिमें रहनेवाली अभव्योंके योग्य जो बादरनिगोदवर्गणायें हैं वे वर्तमान काल में सान्तर हैं, क्योंकि, असंख्यात लोकप्रमाण बादर निगोदवर्गणाओंके द्वारा सब जीवोंसे अनन्तगुणे सब स्थानोंका पूरा करना सम्भव नहीं है। अतीत कालमें भी बादर
ता० प्रती 'सांतराओ. ( सब जीवेहि आणंतगणमेतबादरणिगोदवग्गणाओ भवसिद्धियपाओग्गाओ खीणकसायकालम्मि लब्भमाणियाओ ताओ वट्टमाणकाले सांतराओ ) सव्वजीवेहि। * अ. का. प्रत्यो। 'अभवसिद्धियपाओग्गाओ' इतिपाठः ।
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