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बंधणाणुयोगद्दारे बादरणिगोददव्ववग्गणा (१११ सरीरेसु पविठेसु विदिया पुलविया पविसदिएवं तदिय-चउत्थ-पंचमादि जाव जगसेडीए असंखेज्जदिभागमेतपुलवियासु वडिदासु कम्मभूमिपडिभागसयंभरमणदीवस्स मूलयसरीरे जगसेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तपुलवियाओ एगबंधणबद्धाओ घेत्तूण उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणा होदि । जहण्णादो पुण उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणा असंखज्जगुणा । को गुणगारो? जगसेडीए असंखेज्जदिभागो । के वि आइरिया गुणगारो पुण
आवलियाए असंखेज्जदिभागो होदि ति भणंति, तण्ण घडदे । कुदो? बादरणिगो. दवग्गणाए उक्कस्सियाए सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तो णिगोदाणं त्ति एदेण चलियासुत्तेण सह विरोहादो । ण च सुत्तविरुद्धमाइरियवयणं पमाणं होदि; अइप्पसंगादो । णिगोदसद्दो पुलवियाणं वाचओ त्ति घेतण एसा परूवणा परूविदा । संपहि बावरणिगोदवग्गणाए जहणियाए आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो णिगोदाणं ति एदस्स चलियासुत्तस्स के वि आइरिया वक्खाणमेवं कुणंति । जहा-णिगोदाणमिदि वृत्ते घणावलियाए असंखेन्जविभागो गणगारो होदि त्ति घेत्तव्वो। पत्तेयसरीरउक्कस्सवग्गणं घणावलियाए असंखेज्जदिभागेण गणिदे जहणिया बादरणिगोदवग्गणाए होदि त्ति भणिदं होदि? एदं वक्खाणं ण घडदे सहमणिगोदवग्गणा जहणियाए आवलियाए असंखेज्जदिभागमेतो णिगोदाणं इदि एत्थ वि घणावलियाए असंखज्जदिभागेण उक्कस्सबादरणिगोदवग्गणाए गुणिदाए जहण्णसुहमणिगोदवग्गशरीरोंके प्रविष्ट होने पर दूसरी पुलवी प्रविष्ट होती है। इस प्रकार तीसरी, चौथी और पाँचवीं आदिसे लेकर जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलवियोंकी वृद्धि होने पर कर्मभूमि प्रतिभाग स्वयंभूरमण द्वीपकी मूलीके शरीर में एक बन्धनबद्ध जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलवियोंको ग्रहण कर उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणा होती है। अपनी जघन्यसे उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणा असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है? जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । कितने ही आचार्य गुणकार आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है ऐसा कहते हैं परन्तु वह घटित नहीं होता क्योंकि, उत्कृष्ट बादरनिगोदवर्गणामें निगोदोंका (पुलवियोंका) प्रमाण जगश्रेणिके असंख्यातवें भागमात्र है इस चुलिकासूत्रके साथ विरोध आता हैं । और सूत्रविरुद्ध आचार्योंका वचन प्रमाण नहीं हो सकता, क्योंकि, ऐसा होने पर अतिप्रसंग दोष आता है । निगोद शब्द पुलवियों का वाचक है ऐसा ग्रहण करके यह प्ररूपणा की गई है। अब 'बादरणिगोदवगणाए जहणियार आवलियाए असंखज्जदिभागमेत्तो णिगोदाणं' इस चूलिकासूत्रका कितने ही आचार्य इस प्रकार व्याख्यान करते हैं। यथा-"णिगोदाणं' ऐसा कहने पर उसका अर्थ 'निगोद जीव' लेते है, पुलवियां नहीं । 'आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो' ऐसा कहने पर घनावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार होता है ऐसा ग्रहण करते हैं । प्रत्येकशरीर उत्कृष्ट वर्गणाको घनावलिके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर जघन्य बादरनिगोदवर्गणा होती है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । किन्तु यह व्याख्यान घटित नहीं होता, क्योंकि, 'सुहमणिगोदवग्गणाए जहणियाए आवलियाए असंखेज्जदिभागमेतो जिगोदाणं' यहां भी घनावलिके असंख्यातवें भागसे उत्कृष्ट बादर निगोद वर्गणाके गुणित करने पर जघन्य
ॐ अ-आ- प्रत्योः 'घणावलिए' इति पाठ ।
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