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५, ६, १०१ )
योगद्दारे वग्गणाणिपरूवणा
( १२३
गुप्पण्णसमए चेव संजोगविणासेण होदव्वं; विरोहिगुणुप्पत्तीए संतीए संजोगल्स अवद्वाण विरोहादो । ण च अवयवसंजोगविणासकाले एयपदेसियवग्गणाए उत्पत्ती अत्थि; विणासुप्पत्तीण मेग दव्व विसयाणमक्कमेण वृत्तिविरोहादो । अविरोहे वा जो विणासो सा चैव वप्पत्ती, जा वुप्पत्ती सो चेव विणासो त्तिविणासुप्पत्तिववहाराणं संकरो होज्ज । ण च एवं; असंकिण्णववहारुवलंभादो । तदो विभागसमए परमावग्गणाए ण उत्पादो दुपदेसियवग्गणाए भेदो चेवे त्ति सिद्धो । पुणो एदेसि भेदाणं संघादेण समागत्रेण दुपदेसियवग्गणा उप्पज्जदि ति सत्थाणेण भेदसंघादेण जा दुपदेसियवग्गणाए समुप्पत्ती सा पुव्विल्लभंगेसु णांत भावं गच्छदित्ति सिद्धं । अथवा दुपदेसियवग्गणाए दोसु खंधेसु भेदं गच्छंतसमए चेव अण्णोष्णेन समागम गंण कमेण दुपदेसियवग्गणाओ उप्पज्जंति त्ति भेदसंघादेणुप्पत्ती वत्तव्वा । एदमत्थपदमुवरि सव्वत्थ वत्तव्वं ।
सत्त०
तिपदेसिय परमाणुपोग्गलदव्ववग्गणा चदु० पंच० छ० अट्ठ० णव० दस० संखेज्ज० असंखेज्ज० परित्त० अपरित्त०
कार्यकी उत्पति होने मे विरोध है, इसलिए अवयवोंके विभागके उत्पन्न होने के समय ही संयोग का विनाश होना चाहिए, क्योंकि, विरोधी गुणकी उत्पत्ति होने पर संयोगका अवस्थान होनेम विरोध है । यदि कहा जाय कि अवयवोंके संयोग के विनाशके समय ही एकप्रदेशी वर्गणाकी उत्पत्ति होती है सो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, एक द्रव्यको विषय करनेवाले विनाश और उत्पत्तिकी युगपत् वृत्ति होने में विरोध है । यदि विरोध नहीं माना जाता है तो जो विनाश है वही उत्पत्ति हो जायगी और जो उत्पत्ति है वह विनाश हो जायगा, इसलिए विनाश और उत्पत्तिके व्यवहारमें संकर हो जायेगा । परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, इन दोनों का सांक दोष से रहित होकर व्यवहार उपलब्ध होता है, इसलिए विभाग के समय में परमाणु वर्गणाकी उत्पत्ति नहीं होती, उस समय द्विप्रदेशी वर्गणाका भेद ही होता है यह बात सिद्ध हुई । पुनः इन भेदोंके प्राप्त हुए संघात से द्विप्रदेशी वर्गणा उत्पन्न होती है, इसलिए स्वस्थान में भेदसंघात से जो द्विप्रदेशी वर्गणाकी उत्पत्ति हुई है वह पहले के भंगों में अन्तर्भावको नहीं प्राप्त होती है यह सिद्ध | अथवा द्विप्रदेशी वर्गणा के दो स्कन्ध भेदको प्राप्त होनेके समय में ही परस्पर में नागमको प्राप्त होकर क्रमसे द्विप्रदेशी वर्गणायें उत्पन्न होती हैं, इसलिए भेद - संघात से उत्पत्ति कहनी चाहिए | यह अर्थपद आगे सर्वत्र कहना चाहिए ।
त्रिप्रदेशी परमाणुपुद्गलद्रव्यवर्गणा, चारप्रदेशी, पांचप्रदेशी, छहप्रदेशी, सातप्रदेशी, आठप्रदेशी, नौप्रदेशी, दसप्रदेशी, संख्यातप्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी, परीत
Q ता० प्रती - गुणुप्पत्तीए संजोगस्स' इति पाठ: । ता० प्रतो' अव (यव) ठ्ठाण - ' अ० आ० का० प्रतिषु ' अवयवट्ठाण -' इति पाठ: [ म० प्रतिपाठोऽयम् [ प्रतिषु णांतयब्भावं ' इति पाठः ।
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