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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
तिमभागदव्वस्स तब्भेदत्ताणववत्तीदो वा । ण च महाखंधवग्गणा गट्ठा संती पत्तेयसरीरवग्गणसरूवेण परिणमदि; तिस्से सम्वकालं विणासाभावादो पत्तेयसरीरवग्गणाए आणंतियत्तप्पसंगादो णिच्चेयणस्स सचेयणभावेण परिणामविरोहादो वा। तदो पत्तेयसरीरवग्गणा उरिल्लोणं वग्गणाणं भेदेण संघादेण वा ण होदि ति सिद्धं। किंतु सत्थाणेण भेदसंघादेण होदि; पत्यवग्गणभेदाणं वग्गणाणं समुदयसमागमेण असमा. गमेण वा वग्गणुप्पत्तिदंसणादो।
पत्तेयसरीरवग्गणाए उवरि बादरणिगोदवव्वग्गणा णाम कि भेदेण कि संघादेण कि भेदसंघादेण ॥ १११ ॥
सुगमं।
सत्थाणेण भेदसंघादेण ।। ११२ ॥ हेडिल्लीणं ताव संघादेण बादरणिगोदवग्गणा ण होदि; णिच्चेयणाणं वग्गणाणं समुदयसमागमेण सचित्तवग्गणप्पत्तिविरोहादो असंखेज्जलोगमेत्तपत्तेयसरीरवग्गणाणं समुदयसमागमेण अणंतजीवगन्भेगबादरणिगोदवग्गणाए उप्पत्तिविरोहादो । ण च उरिमसचित्तवग्गणाए भेदेण होदि ; एगसुहमणिगोदवग्गणजीवाणमक्कमेण सव्वेसि पि
वर्गणाके अनन्तवें भागप्रमाण द्रव्यका उस रूपसे भेद भी नहीं बन सकता है। यदि कहा जाय कि महास्कन्धवर्गणा नष्ट होती हुई प्रत्येकशरीरवर्गणारूपसे परिणमन करती है सो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, एक तो उसका सर्वकाल विनाश नहीं होता, दूसरे ऐसा मानने पर प्रत्येकशरीरवर्गणाके अनन्त होनेका प्रसंग आता है और तीसरे अचेतनका सचेतनरूपसे परिणमन होने में विरोध है, इसलिए प्रत्येकशरीरवर्गणा उपरिम वर्गणाओंके भेद या संघातसे नहीं उत्पन्न होती है यह सिद्ध हुआ। किन्तु स्वस्थानकी अपेक्षा भेद-संघातसे उत्पन्न होती है, क्योंकि, प्रत्येक वर्गणाके अवान्तर भेदरूप वर्गणाओंके समुदयसमागम या असमागमसे वर्गणाकी उत्पत्ति देखी जाती है।
प्रत्येकशरीरवर्गणाके ऊपर बादरनिगोदवर्गणा क्या भेदसे होती है, क्या संघा. तसे होती है या क्या भेद-संघातसे होती है ।। १११ ।।
यह सूत्र सुगम है। स्वस्थानकी अपेक्षा भेद-संघातसे होती है ।। ११२ ।।
नीचेकी वर्गणाओंके संधातसे तो बादरनिगोदवर्गणा उत्पन्न होती नहीं, क्योंकि, अचेतन वर्गणाओंके समुदयसमागमसे सचेतन वर्गणाओंकी उत्पत्ति होने में विरोध है । तथा असंख्यात लोकप्रमाण प्रत्येकशरीरवर्गणाओं के समृदयसमागमसे अनन्तजीवगर्भ एक बादरनिगोदवर्गणाकी उत्पत्ति होने में विरोध है । यह कहना उपरिम सचित्तवर्गणाके भेदसे यह वर्गणा होती है, ठीक नहीं है, क्योंकि, एक सूक्ष्म निगोंदवर्गणाके सब जीवोंका युगपत् बादरनिगोदवर्गणारूप For Private & Personal Use Only
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