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बंधणाणियोगद्दारे वग्गणाणिपरूवणा
( १२९ संघादेण ण पत्तेयसरीरवग्गणा उप्पज्जदि त्ति सिद्धं । उवरिल्लोणं दवाणं भेदेण विणा पत्तेयसरीरवगणा उप्पज्जदि, बादर-सुहमणिगोदवग्गणाणमोरालिय-तेजा-- कम्मइयवग्गणक्खंधेसु अधटिदिगलणाए गलिदेसु पत्तेयसरीरवग्गणं वोलेदूण हेट्ठा सांतरणिरंतरादिवग्गणसरूवेण सरिसधणियभावेण अवट्ठाणुवलंभादो । कथमेद नव्वदे ? सत्थाणेण भेदसंघादेणेव पत्तेयसरीरवग्गणा होदि ति सुत्तण्णहाणुववत्तीदो! भेवं गदविदियसमए पत्तेयवग्गणसरूवेग तेसि परिणामो अस्थि ति उवरिल्लीण दव्वाणं भेदेण पत्तेयसरीरवग्गणाए उत्पत्ती किण्ण बुच्चदे ? ण, उरिमवग्गणादो आगदपरमाणपोग्गलेहि चेव पत्तेयसरीरवग्गणणिप्पत्तीए अभावादो । बादर-सुहमणि. गोदवग्गणाहिंतो एगजीवपत्तेयसरीरेसुप्पण्णे संते उरिल्लोणं दवाणं भेदेण पत्तेयसरीरवववग्गणाए उप्पत्ती किण्ण बच्चदे? ण, उवरिल्लीणं वग्गणाणं भेदो गाम विणासो। ण च बादर-सुहमणिगोदवग्गणाणं मज्झे एया वग्गणा गट्ठा संती पत्तेयसरीरवग्गणासरूवेण परिणमदि; पत्तेयवग्गणाए आणंतियप्पसंगादो। ण च असं-- खेज्जलोगमेत्तजीवेहि एगा बादरणिगोदवग्गणा सुहमणिगोदवग्गणा वा णिप्पज्जदि; तव्वग्गणाणमाणंतियत्तप्पसंगादो विष्फट्टैगजीवस्स बादर-सुहमणिगोववग्गणाणमणंएक बन्धन नहीं होता । इसलिए नीचेकी वर्गणाओंके संघातसे प्रत्येकशरीरवर्गणा नहीं उत्पन्न होती है यह सिद्ध हुआ।
___ ऊररके द्रव्यों के भेदके बिना प्रत्येकशरीरवर्गणा उत्पन्न होती है, क्योंकि, बादरनिगोदवर्गणा और सूक्ष्म निगोदवर्गणाके औदारिक, तैजस और कार्मणवर्गणास्कन्धोंके अधःस्थितिगलनाके द्वारा गलित होने पर प्रत्येकशरीरवर्गणाको उल्लघन कर उनका नीचे सदृशधनरूप सान्तरनिरन्तर आदि वर्गणारूपसे अवस्थान उपलब्ध होता है।
शंका- यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान- स्वस्थानकी अपेक्षा भेद-संघातसे ही प्रत्येकशरीरवर्गणा होती है यह सूत्र अन्यथा बन नहीं सकता है, इससे जाना जाता है ।
शंका-भेदको प्राप्त होनेके दूसरे समयमें प्रत्येकशरीरवर्गणारूपसे उनका परिणमन होता है. इसलिए उपरिम द्रव्योंके भेदसे प्रत्येकशरीरवर्गणाका उत्पत्ति क्यों नहीं कहते ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, उपरिम वर्गणासे आये हुए परमाणु पुद्गलोंसे ही प्रत्येकशरीरवर्गणाकी निष्पत्तिका अभाव है।
शका- बादरनिगोदवर्गणासे और सूक्ष्मनिगोदवर्गणासे एक जीवके प्रत्येकशरीरवालोंमें उत्पन्न होने पर ऊपरके द्रव्योंके भेदसे प्रत्येकशरीरद्रव्यवर्गणाकी उत्पत्ति क्यों नहीं कहते ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, ऊपरकी वर्गणाओंके भेदका नाम ही विनाश है और बादरनिगोद. वर्गणा तथा सूक्ष्म निगोदवर्गणामें से एक वर्गणा नष्ट होती हुई प्रत्येकशरीरवर्गणारूपसे नहीं परिणमती, क्योंकि ऐसा होने पर प्रत्येकशरोरवर्गणाएं अनन्त हो जायगी । यदि कहा जाय कि असंख्यात लोकप्रमाण जीवोंके द्वारा एक बादरनिगोदवर्गणा या सूक्ष्म निगोदवर्गणा उत्पन्न होती है सो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि, इस प्रकार उन वर्गणाओंके अनन्त होनेका प्रसंग आता है । तथा अलग हुए एक जीवके बादरनिगोदवर्गणाके और सूक्ष्म निगोद
* आ० प्रत्तो "भेदेण वि ण" इति पाठ ।
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