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छक्खंडागमे वग्गणा - खंड
(५, ६, ९६.
णिगोदवग्गणं घेत्तूण पुणो एदिस्से उवरि पुव्वविहाणेण आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तपुलवियासु वडिदासु महामच्छसरीरे छण्णं जीवणिकायाणमेगबंधणबद्धाणं संघादे उक्कस्सिया सुहुमणिगोदवग्गणा दिस्सदि । संपहि एत्थ आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तपुलवियाओ । एक्केक्किस्से पुलवियाए असंखेज्जलोग मेत्तणिगोदसरीरे अणंताणंता जीवा च अत्थि । संपहि एत्थ गुणिदकम्मं सियलक्खणेणागदजीवा आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ता चेव होंति । सेससव्वजीवा गुणिदघोलमाणा । कुदो साभावियादो । संपहि जहण्णसुहुमणिगोदवग्गणप्पहूडि जाव सुहुमणिगोदुक्कस्सवग्गणे ति ताव सव्वजीवेहि अनंत गुणमेत्तनिरंतरद्वाणाणि लक्षूण एगं चेव फड्डुयं होबि; अंतराभावादी संपहि । एत्थतणासेसजीवाणमोरालिय-तेजा- कम्मइयसरीरकस्मणोकम्म विस्सासुवचयसहिद सव्वपरमाणूं घेत्तूण सुहुमणिगोद उक्कस्वग्गणा होदि । जहण्णादो उक्कस्सा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एवमेसा एक्कवीसदिमा वग्गणा । २१ । परूविदा |
सहमणिगो ददश्ववग्गणाणमुवरि धुवसुण्णदव्ववग्गणा णाम ।। ९६ ॥ उक्क सहमणिगोददव्ववग्गणाए उवरि एगरूवे पक्खित्ते चउत्थीए धुवसुण्णवग्गणाए सव्वजहण्णवग्गणा होदि । तदो रूवुत्तरकमेण सव्वजीवेहि अनंतगुणमेत्तद्वाणं
वर्गणाको छोडकर इसके समान महामत्स्यके शरीरकी सूक्ष्मनिगोदवर्गणाको ग्रहण कर पुनः इसके ऊपर पूर्व विधि के अनुसार आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलवियोंकी वृद्धि होने पर महामत्स्यके शरीर में एक बन्धनबद्ध छह जीव निकायोंके संघात में उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गणा दिखलाई देती है । यहां आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण पुलवियां हैं और एक एक पुलवि असंख्यात लोकप्रमाण निगोद शरीर में अनन्तानन्त जीव हैं। यहां गुणित कर्माशिक लक्षणसे आये हुए जीव आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाग ही होते हैं शेष सब जीव गुणित घोलमान होते हैं, क्योंकि, ऐसा स्वभाव है । अब जघन्य सूक्ष्मनिगोदवर्गणासे लेकर उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गणा पर्यन्त सब जीवोंसे अनन्तगुणे निरन्तर स्थान प्राप्त होकर एक ही स्पर्धक होता है, क्योंकि, मध्य में कोई अन्तर नहीं है । अब यहांके समस्त जीवोंके औदारिक, तैजस और कार्मणशरीर के कर्म और नोकर्म विस्रसोपचयसहित सब परमाणुओंको ग्रहण करके उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदवर्गणा होती है । यहां जघन्य वर्गणासे उत्कृष्ट वर्गणा असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? पल्यका असंख्यातवां भाग गुणकार है । इस प्रकार यह इक्कीसवीं बर्गणा कही ।
सूक्ष्म निगोदद्रव्यवर्गणाओंके ऊपर ध्रुवशून्यद्रव्यवर्गणा होती है ।। ९६ ॥
उत्कृष्ट सूक्ष्मनिगोदद्रव्यवर्गणामें एक अङक के मिलाने पर चौथी ध्रुवशून्य वर्गणाकी सबसे जघन्य वर्गणा होती है । अनन्तर एक अधिकके क्रमसे सब जीवोंसे अनन्तगुणे स्थान
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ता० ' - सरीरणोकम्म-' इति पाठ: 1
अ आ प्रत्यो: 'गुणमेत्तमद्वाणं' इति पाठ: 1
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