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५, ६, ९३. ) बधणाणुयोगद्दारे दव्वबंधपरूवणा
( १०५ विस्सासुवचयसहिदकम्मपरमाणुं पवेसिय ५०२ णेयव्वं जाव कम्मइयसरीरघुजम्मि अभवसिद्धिएहि अणंतगुणा सिद्धाणमणंतभागमेता कप्मपरमाणू विस्तासुवचयसहिदा वड्दिा त्ति । पुणो एदे वड्डिदपरमाणु केत्तिया? एगबादरणिगोदजीवस्स कम्मइयसरीरम्मि जत्तिया विस्सासुवचयसहियकम्मपरमाण अस्थि तत्तियमेत्ता । एवं वद्भिदणच्छिदे पुणो अण्णो जीवो खविदकम्मसियलक्खणंण आगंतूण खीणकसायदुचरिमसमए बादरणिगोदजीवेण अब्भहियं काऊणच्छिदो ताधे पुणरुत्तट्टाणं होदि; पुव्वंकमेण वड्डाविदपरमाणूणमेत्थ एगजीवम्मि उवलंभादो। पुणो एदस्सुवरि एगपरमाणुम्हि वड्डिदे अण्णमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । एवं पुव्वं व वड्ढावदेव्वं जाव अण्णेगजीवस्त ओरालियतेजा- कम्मइयसरीरपरमाण सविस्सासुवचया पविट्टा त्तिातदो पुवविहाणे बिदियो जीवो पवेसियव्वो। एवमेदेण कमेण पलिदोवमस्स असंखेदिभागमेत्ता जीवा परिवाडीए पवेसियव्वो। णवरि खोणकसायचरिमसमए पविट्ठजीवेहितो दुचरिमसमए पविद्धजीवा विसेसाहिया होति । कुदो? चरिम-दुचरिमजीवविसेसाणमेत्थ सणादो। केत्तियमेतो विसेसो? चरिमसमयविसेसस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो।एदेसु जीवेसुपरमाणुत्तरकमेण अण्णाणि वि अपुणरुत्तढाणाणि छप्पुंजे अस्सिदूण उप्पादेदव्वाणि जावप्पणो उक्कस्सत्तं पत्ताणि ति । एवं चिराणजीवपरमाणुपोग्गलेसु संपहि पविट्ठजीवपरमाणपोग्गलेसु च वडिदेसु दुचरिमसमयबादरणिगोदवग्गणा उक्कस्सा होदि । पुणो एत्थ आवलियाए कराकर कार्मणशरीरके पुञ्ज में अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागमात्र विस्रसोप - चयसहित कर्मपरमाणुओंकी वृद्धि होने तक ले जाना चाहिए । पुनः ये बढे हुए परमाणु कितने है? एक बादर निगोद जीवके कार्मणशरीरमें जितने विस्रसोपचयसहित कर्मपरमाणु हैं उतने हैं। इस प्रकार बढाकर स्थित होनेपर पुनः अन्य जीव क्षपितकौशिकविधिसे आकर क्षीणकषायके द्विचरम समयमें बादर निगोद जीवसे अधिक कर स्थित है तब पुनरुक्त स्थान होता है। क्योंकि, पूर्व क्रमसे बढाये हुए परमाणु यहाँ एक जीवमें उपलब्ध होते हैं । पुनः इसके ऊपर एक परमाणु के बढ़ने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता हैं। इस प्रकार अन्य एक जीवके औदारिक तेजस और कार्मणशरीरके परमाणु अपने विस्रसोपचयसहित प्रविष्ट होने तक पहलेके समान बढाना चाहिए । अनन्तर पूर्व विधिसे दूसरा जीव प्रविष्ट करना चाहिए । इस प्रकार इस क्रमसे पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण जीव क्रमसे प्रविष्ट कराने चाहिए। इतनी विशेषता है कि क्षीण. कषायके अन्तिम समय में प्रविष्ट हुए जीवोंसे द्विचरम समयमें प्रविष्ट हुए जीव विशेष अधिक होते हैं, क्योंकि, चरम और द्विचरम सम्बन्धी जीवोंका विशेष यहाँ दिखाई देता है।विशेषका प्रमाण क्या है? अन्तिम समय में जितना विशेष होता है उसका असख्यातवाँ भाग यहाँ विशषका प्रमाण है । इन जीवोंमें एक परमाणु अधिकके क्रमसे अपने उत्कृष्ट स्थानके प्राप्त होने तक छह पुजोंका आश्रय लेकर अन्य भी अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न करने चाहिए । इस प्रकार जीवके पुराने परमाणु पुद्गलों में तत्काल प्रविष्ट हुए जीव परमाणु पुद्गलोंके बढाने पर विचरम
8 ताoप्रतो 'पुव्वकमेण इति पाठः ।
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