________________
८६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६. ९३. संपहि पुलवियाणं एत्थ सरूवपरूवणं कस्सामो। तं जहा - खंधो अंडरं आवासो पुलविया णिगोदसरीरमिदि पंच होति । तत्थ बादरणिगोदाणमासयभदो* बहुएहि वक्खारएहि सहियो वलंतवाणियकच्छ उडसमाणो मलय-थहल्लयादिववएसहरो खंधो णाम। ते च खंधा असंखेज्जलोगमेत्ता; बादरणिगोदपदिदिदाणमसंखेज्जलोगमेत्तसंखुव. लंभादो । तेसि खंधाणं ववएसहरो तेसिक भवाणमवयवा वलंजुअकच्छउडपुव्वावरभागसमाणा अंडरंणाम । अंडरस्स अंतोट्टियो कच्छ उडंडरतोट्टियवक्खारसमाणो आवासो णाम। अंडराणि असंखेज्जलोगमेत्ताणि । एक्केक्कम्हि अंडरे असंखेज्जलोगमेत्ता आवासा होति । आवासमंतरे संदिदाओ कच्छ उडंडरवक्खारंतोट्ठियपिसिवियाहि समाणाओ पुलवियाओ णाम । एक्केक्कम्हि आवासे ताओ असंखेज्जलोगमेत्ताओ होति । एक्के. क्कम्हि एक्केक्किस्से पुलवियाए असंखेज्जलोगमेताणि णिगोदसरीराणि ओरालियतेजा-कम्मइयपोग्गलोवायाणकारणाणि कच्छउडंडरवक्खारपुलवियाए अंतोट्टिददव्यसमाणाणि पुध पुध अणंताणतेहि णिगोदजीवे हि आउण्णाणि होति । तिलोग-भरहजणवय-गाम-पुरसमाणाणि खंधंडरावासपुलविसरीराणि त्ति वा घेत्तन्वं ।
पुणो एत्थ खीणकसायसरीरं खंधो णाम; असंखेज्जलोगमेत्तअंडराणमाधारभावादो। तत्थ अंडरंतोट्ठियअणंतागंतजीवेसु सुक्कज्झाणेण पडियसमयमसंखेज्जगुणाए
अब यहाँ पर पुलवियोंके स्वरूपका कथन करते हैं। यथा- स्कन्ध, अण्डर, आवास, पुलवी और निगोदशरीर य पाँच होते हैं। उनमें से जो बादर निगोदोंका आश्रयभूत है, बहुत वक्खारोंसे युक्त है तथा वलजंतवाणिय कच्छउड समान है ऐसे मूली, थूअर और आर्द्रक आदि
रण करनेवाला स्कन्ध कहलाता हैं। वे स्कन्ध असंख्यात लोकप्रमाण होते हैं, क्योंकि. बादर निगोद प्रतिष्ठित जीव असंख्यात लोकप्रमाण पाये जाते हैं । जो उन स्कन्धोंके अवयव है और जो वलंजुअकच्छउडके पूर्वापर भागके समान हैं उन्हें अण्डर कहते है। जो अण्डरके भीतर स्थित हैं तथा कच्छ उडअण्डरके भीतर स्थित वक्खारके समान हैं उन्हें आवास कहते हैं। अण्डर असख्यात लोकप्रमाण होते हैं। तथा एक एक अण्डरमें असंख्यात लोकप्रमाण आवास होते हैं । जो आवासके भीतर स्थित हैं और जो कच्छ उडअण्डरवक्खारके भीतर स्थित पिशवियोंके समान हैं उन्हें पुलवि कहते हैं। एक एक आवासमें वे असंख्यात लोकप्रमाण होती हैं। तथा एक एक आवासको अलग अलग एक एक पुलविमें असंख्यात लोकप्रमाण निगोद शरीर होते हैं जो कि औदारिक, तैजस और कार्मण पुदगलोंके उपादान कारण होते हैं और जो कच्छ उड अण्डरवक्खारपुलविके भीतर स्थित द्रव्योंके समान अलग अलग अनन्तानन्त निगोद जीवोंसे आपूर्ण होते हैं । अथवा तीन लोक, भरत, जनपद, ग्राम और पुरके समान स्कन्ध, अण्डर, आवास, पुलवि और शरीर होते हैं ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए ।
पुनः यहाँ पर क्षीणकषाय जीवके शरीरकी स्कन्ध संज्ञा है; क्योंकि, वह असंख्यात लोकप्रमाण अण्डरोंका आधारभूत है । वहाँ अण्डरोंके भीतर स्थित हुए अनंतानंत जीवोंमेंसे शुक्ल
* ता० प्रती '-मास ( म ) य भूदो । अ० आ० प्रत्योः '-मासमयभूदो , इति पाठः । .ता० प्रती '-लोगमेत्तववएसहरा तेसि ' इति पाठः ।
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org