________________
बधणाणुयोगद्दारे बादरणिगोददव्ववग्गणा रुत्तट्ठाणं होदि । कुदो ? अणंतरहेझिमट्ठाणोरालियविस्ससुवचयपुंजादो एदस्स ट्ठाणस्स ओरालियसरीरविस्ससुवचयपुंजो सरिसो होदूण एत्थतणओरालियसरीर पुंजस्स परमाणुत्तरत्तुवलं भादो।
पुणो एदस्सुवरि एगोरालियविस्ससुवचयपरमाणम्हि वडिदे अण्णमपुणरुतढाणं होदि । दोसु विस्पसुवचयपरमाणुसु वडिदेसु अण्णमपुणरुत्तद्वाणं होदि। तिसु विस्ससुवचयपरमाणुसु वडिदेसु अण्णमपुणरुत्तढाणं होदि । एवमेगुत्तरवड्डोए ताव वडिवेदव्वं जाव सध्वजीवेहि अणंतगुणमेत्तविस्ससुवचयपरमाणू वडिदा ति । एवं वड्डादूच्छिदे तो अण्णो जीवो ओघजहण्णदव्वं दोओरालियपरमाणुहि दोवारं वडिद - विस्ससुवचयेहि य अब्भहियं काऊण खीणकसायचारमसमए द्विदो ताधे अण्णमपुणरुत्तट्टाणं होदि । एवमेदेण कमेण ताव वडावेदव्वं जाव अभवसिद्धिएहि अणंतगणासिद्धाणमणंतभागमेत्ता ओरालियसरीरपरमाण सव्वजीवेहि अणतगुणमेत्ता तेसि विस्ससुवचयपरमाण च वड्डिदा त्ति । वड्ढेता वि केवडिया इदि पुच्छिदे एयबादरणिगोदजीवम्मि जत्तियविस्ससुवचयसहियओरालियसरीरपरमाण अस्थि तत्तियमेत्ता।
कधमेगो जीवो दोण्णं जीवाण सविस्सासोरालियसरीरपुंजस्त आहारो होज्ज? ण, एक्कम्हि वि जीवे असंखेज्जाणंख विद कम्मंसियजीवाणमोरालियसरीरदत्ववलंभादो। अनन्तर पूर्वके स्थानके औदारिक विस्रसोपचय पुजके साथ इस स्थानका औदारिकशरीर विस्रसोपचय पुञ्ज समान होकर यहांके औदारिकशरीर पुजमें एक परमाणु अधिक उपलब्ध होता है।
पुन: इसके ऊपर एक औदारिक विस्रसोपचय परमाणुके बढने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है । दो विस्रसोपचय परमाणुओंके बढ़ने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। तीन विस्रसोपचय परमाणुओंके बढ़ने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है । इस प्रकार सब जीवोंसे अनन्तगुणे विस्रसोपचय परमाणुओंकी वृद्धि होने तक उत्तरोत्तर एक एक परमाणुको बढाते जाना चाहिए। इस प्रकार बढाकर स्थित होने पर अनन्तर एक अन्य जीव लो जो ओघ जघन्य द्रव्यको दो औदारिक परमाणुओंसे और दो बार बढाए हुए विस्रसोपचयोंसे अधिक करके क्षीणकषायके अन्तिम समयमें स्थित है तब अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है। इस प्रकार इस क्रमसे तब तक बढाते जाना चाहिए जब जाकर अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें भागमात्र औदारिकशरीर परमाणुओंको और सब जीवोंसे अनन्तगुणे उन्हीं के विस्रसोपचय परमाणओंकी वद्धि हो जाती है। बढाते हए भी कितनी बार बढावे ऐसा प्रश्त करने पर कहते हैं कि एक बादर निगोद जीवके जितने विस्रसोपचयके साथ औदारिकशरीर परमाण हैं उतनी बार बढावे ।
शंका-एक जीव दो जीवोंके विस्रसोपचयसहित औदारिकशरीर पुञ्जका आधार कैसे हो सकता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, एक ही जीवमें असंख्यात क्षपित कर्माशिक जीवोंका औदारिकशरीर द्रव्य उपलब्ध होता है ।
४ता० प्रती जीवे असंखेज्जगणं खविद- ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org