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८२ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ६, ९१. सरीरणामकम्मोदयाभावादो ण पत्तेयसरीरत्तं ण साहारणसरीरत्तं। तदो ते पत्तेयसरीरबादर-सुहुमणिगोदवग्गणासु ण कत्थ विपदंति ति वृत्त वच्चदे- ण एस दोसो; विग्गहगदीए बादर-सुहुमणिगोदणामकम्माणमुदयदसणेण तत्थ वि बादर-सहमणिगोद. वववग्गणाणमुवलंभादो। एदेहितो वतिरित्ता जीवा गहिदसरीरा अगहिदसरीरा वा पत्तेयसरीरवग्गणा होति । तदो पत्तेयस रोरा असंखेज्जलोगमेत्ता होंति त्ति सिद्धं । ते च एगबंधणबद्धा असंखेज्जलोगमेत्ता होंति । कुदो एवं णवदित्ति वुत्ते ईसिप्पन्भाराए पुढवीए बादरपुढविकाइयजीवा असंखेज्जलोगमेत्ता होदूण सव्वत्थोवा । एक्कम्हि उदगबिदुम्हि आउकाइया जीवा असंखेज्जगुणा। एक्कम्हि इंगाले तेउक्काइया जीवा असंखेज्जगुणा एक्कम्हि जलबुब्बुदे वाउक्काइया जीवा असंखेज्जगुणात्ति अप्पाबहुगसत्तादो नव्वदे। तदो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तजीवेहि एगबंधणबद्धेहि उक्कस्सिया एया पत्तेयसरीरवग्गणा होदि ति ण घडदे ? ण एस दोसो, ईसिप्पन्भारसिलेग-जल. बिद्इंगाल-जलबब्बदेस पादेक्कमसंखेज्जलोगमेत्तजीवेस संतेस वि तत्थ तेउवकाइयपज्जत्तमेत्ताणं चेव जीवाणमेगबंधणबद्धाणमवलंभादो। एगबंधणबद्धा एत्तिया चेव
जाना जाता है।
शंका-- विग्रहगतिमें शरीर नामकर्मका उदय नहीं होता, इसलिए वहां न तो प्रत्येक शरीरपना प्राप्त होता है और न साधारणशरीरपना ही प्राप्त होता है। इसलिये वे प्रत्येकशरीर, बादर और सूक्ष्म निगोद वर्गणाओंमें से किन्ही में भी अन्तर्भत नहीं होती हैं ?
समाधान-- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, विग्रहगतिमें बादर और सूक्ष्म निगोद नामकर्मोका उदय दिखाई देता है इसलिए वहां पर भी बादर और सूक्ष्म निगोद द्रव्यवर्गणायें उपलब्ध होती हैं। और इनसे अतिरिक्त जिन्होंने शरीरोंको ग्रहण कर लिया है या नहीं ग्रहण किया है वे सब जीव प्रत्येकशरीर वर्गणावाले होते हैं ।
इसलिए प्रत्येकशरीर वर्गणायें असंख्यात लोकप्रमाण होती हैं यह सिद्ध होता है ।
शंका-- एक बन्धनबद्ध वे जीव असंख्यात लोकप्रमाण होते हैं। यदि कहो कि यह बात किस प्रमाणसे जानी जाती है तो इसका समाधान यह है कि ईषत्प्राग्भार पृथिवीमें बादर पथिवीकायिक जीव असंख्यात लोकप्रमाण होते हुए भी सबसे स्तोक होते हैं। इनसे एक जलबिन्दुमें जलकायिक जीव असंख्यातगुणे होते हैं। इनसे एक अंगारेमें अग्निकायिक जीव असंख्यातगुणे होते हैं । इनसे एक जलके बुलबुलेमें वायुकायिक जीव असंख्यागुण होते हैं। इस प्रकार इस अल्पबहुत्व सूत्रसे यह बात जानी जाती है। इसलिए पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण एक बन्धनबद्ध जीवोंके अवलम्बनसे एक उत्कृष्ट प्रत्येकशरीर वर्गणा होती है यह बात घटित नहीं होती ?
समाधान-- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, ईषत्प्राग्भार शिलामें, एक जलबिन्दुमें, एक अंगारे में और जलके एक बुलबुले में अलग अलग असंख्यात लोकप्रमाण जीवोंके होने पर भी वहां मात्र तेजस्कायिक पर्याप्त जीव ही एक बन्धनबद्ध उपलब्ध होते हैं ।
७ ता० प्रती । (त्ति- ) वृत्ते ' इति पाठः 1 * ता० प्रती — इसिप्पभाराए ' इति पाठः !
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